ए वक्त!
एवक्त! तू भी इन चंचल तितलियों सा ही है।
जहाँ भी ठहरता है तेरे हर रंग छोड़ देता है।
जा़लिम तेरे कारनामें क्या बयां करे ये जहाँ।
बनाता है किसी को, किसी को तोड़ देता है।
शशि “मंजुलाहृदय”
एवक्त! तू भी इन चंचल तितलियों सा ही है।
जहाँ भी ठहरता है तेरे हर रंग छोड़ देता है।
जा़लिम तेरे कारनामें क्या बयां करे ये जहाँ।
बनाता है किसी को, किसी को तोड़ देता है।
शशि “मंजुलाहृदय”