“ए जिंदगी!”
मैं कहूं-“लिख दूं तुम्हें”
तुम कहोगी-“जी नहीं”।
मैं कहूं-“पढ़ लूं तुम्हें”
तुम कहो “बिल्कुल नहीं”।
जो कहो तुम ही कहो
तुम मेरी सुनती नहीं।
तुम मेरी प्यारी सखी
तेरी मैं तो कुछ लगती नहीं।
तू हँसे तो मैं हसूं,
रोए तो मैं रोउ।
तू चले चलती हूं मैं,
रुकती तो मैं थम जाउ।
मैं लड़ी तेरे लिए,
तू कभी लड़ती नहीं।
लड़खड़ाए थाम लूं मैं,
तू थामने बढ़ती नहीं।
चल तुझे जैसे है चलना,
मैं यहीं तू भी यहीं।
तेरी की हर मांग पूरी,
बात तक टाली नहीं।
“ए ज़िन्दगी” तेरे साथ मैं ,
कभी राह छोड़ी न तेरी।
मुझको जो तूने दिया,
यह भी सही वह भी सही।
– शशि “मंजुलाहृदय”