ए- अनूठा- हयात ईश्वरी देन
किसी भी कृत्य, कार्य को
अंजाम देने के लिए हमें
होना चाहिए हमारे पार्श्व
इस हयात में जोश, आवेग
तब ही हम अपनें कार्य को
दे सकते है हमसब अंजाम।
किसी उत्तम हो या अधम
करतब को करने में हमें
कई तरह के मारफ़त से
करवाया जा सकता यहां
तृष्णा, लिप्सा, आक्रोश में
अधर्म का पंथ होता आसां।
किसी को कुछ करने में
पड़ती जोश की गरजता
किसी के दबाव में अक्सर
हमें करना पड़ता हेय कार्य
उससे होगी बेवजीह हमारी
सतत अपनाए उत्तम डगर ।
किसी को अपना सखावर हमें
सोच समझकर बनानी चाहिए
मित्र जैसा रहेगा वैसा ही हम
सम्मुख जिंदगानी में हो जायेगे
आक्रोश में ना ले कोई अद्ल
ए- अनूठा- हयात ईश्वरी देन ।
अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार