एहसास
क्या तुम्हें एहसास है, कैसा लगा होगा !
सामने आँख के, सपना फिसल गया होगा ।
जिसका, मुद्दतों किया था इंतज़ार तुमने,
जब दिखा ,तो किसी और को मिल गया होगा ।
कुछ न मिला आज भी, जो काम ढूँढने निकला ,
सुबह फिर, क़िस्मत आज़माने रवाना होगा l
और उसके बाद ,सवालात की रात, सो सी गई ,
तकिये के नीचे छिपे सवालों ने , सुबह जगाया होगा II
डा राजीव “सागरी”