एहसास
मैं जिंदा हूँ शब्दों के भीतर
यह एहसास हो रहा है खुद को,
न जाने कितने तूफ़ान मचे हैं
दिल के नाजुक कोने में मेरे,
हमेशा मेरी कलम संभाल लेती है
शब्दों की नाव में सहारा देकर,
कितना कुछ है कहना !
कितना है सुनाना,
शब्द नहीं बन पाए
वह मुस्कुराहटों में,मौन में,
कभी आंसुओं के सैलाब में,
उन एहसासों को बहा देता है
नई जन्म लेती रूहानी संवेदनाएं
कभी तड़पती, मचलती, कभी शोर करती
शब्द ही सहारा है…..
सच है !
मैं जिंदा हूँ शब्दों के भीतर
यह एहसास हो रहा है खुद को!