एहसास हुआ करता है
जब बरसात भिगोती तन को ,मन में उल्लास हुआ करता है।
शबनमी हो जाता है तन मन ,जब भी वो पास हुआ करता है।
बरसात की बूंदे ,मौसम मध्धम और धरती की सौंधी खुशबू,
है जरूरी कितना बरसात का मौसम ,ये एहसास हुआ करता है।
बारिश आए ,एहसास दिलाये और मेरे तन- मन को भाए।
मेरे केशों को हल्का भिगा , मेरा मन कहीं डोल न जाए।
मेरे दिल के हर जर्रे – जरे में , यादों का वास हुआ करता है।
है जरूरी कितना बरसात का मौसम ,ये एहसास हुआ करता है।
भीगी पलकें, चेहरे भीगे और भीग जाता है प्यारा मन।
बरसात की सुहानी याद लिए,चलता जाता है जीवन।
मन चंचल ,चित चोर हो जाता कौन सम्भाले भावों को,
तन में मन सुरक्षित है ,पर इसका भी प्रवास हुआ करता है।
है जरूरी कितना बरसात का मौसम ,ये एहसास हुआ करता है।
-सिद्धार्थ पाण्डेय