एहसास पर लिखे अशआर
एहसास नहीं कितने
एहसास से गुज़रे हैं ।
जीवन की कसौटी पर
कितना हम उतरे हैं ।।
हमको एहसास अब नहीं होता ।
हमने मजबूरियों को समझा है ।।
एक एहसास ही था तेरा |
मेरे एहसास में रहा बाकी ॥
दर्द को फिर राहते नहीं मिलती।
लफ़्ज़ एहसास जब सिमट जाए ॥
मैैं लिख पाऊं तुम्हें दिल से।
मुझे एहसास दे देना ।।
जो धड़के नाम से तेरे ।
मुझे वो सांस दे देना ॥
एक दर्द- ए-एहसास जिसे कह न पाऊं कहीं ।
गुज़रते वक़्त की मानिंद गुज़र न जाऊं कहीं ।।
लफ़्ज़ों में पिरो लेते है एहसास के मोती ।
हमें इजहार-ए-तमन्ना का सलीक़ा नहीं आता।।
सारे एहसास के रिश्तों से मुकर जाते हैं ।
जब हक़ीक़त के सवालों से गुज़र जाते हैं ।।
मेरे एहसास का तुम्ही मरकज़ ।
जब भी सोचेंगे तुमको सोचेंगे ।।
नज़ारा दर्द का पल भर में बदल जाए।
दिलों को दर्द का अगर एहसास मिल जाए।।
कुछ लम्हें ऐसे गुज़रे कभी बारिशों में भीगे ।
कभी ली गुलों की खुशबू कभी बारिशों में भीगे ।।
तू बिछड़ के देख लेना
एहसास तुझको होगा ।
मुझे दर्द कोई होगा
तो एहसास तुझको होगा ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद