एहसास-ए-शु’ऊर
ज़िंदगी सोज़ -ए- पिन्हाँ इस कदर गुज़ारी,
जिस्म़-ओ- जाँ अश्कों से सराबोर किया ,
गिला -शिकवा करें तो किससे, किसका ,क्यूँ कर ?
हमने खुद ही अपना चाक -ए – गिरेबाँ किया ,
मस्ती -ए-अना मे रहे हम ,
होश आया तो खुद को शर्म़सार किया ,
ताउम्र ला- हासिल की जुस्तजू रही,
जो मयस्सर था, उसे भी गवां कर ,
दिल को बेक़रार किया।