एहसासों को लफ्जों की जरूरत नहीं होती (नज्म)
सुनो ऐसा है…
मुझे तुमसे कुछ कहना है …
कुछ बातें है जो मुझे तुमसे करनी है…
लेकिन ये इतना आसान भी नहीं है….
तुम्हारा पहला सवाल होगा …
क्या कोई जरुरी बात है….???
तो सुनो ऐसा है ….
बात जो तुमसे कहनी है…
वो बात कितनी अहम है….
कितनी जरुरी है….
अहम है भी या न
इस बात का फैसला…
भला मै कैसे कर सकता हूँ…??
क्योंकि…
बातें अहम है या गैर-अहम…
सुनने लाइक है भी या नहीं…
इसका फैसला तो सुनने वाला किया करता है…
बातो को…
महानता के शिखर तक पहुँचाने वाला…
शोहरत की बुलंदिया अता करने वाला..
फर्श से अर्श के मुकाम पर ले जाने वाला…
युगों युगों तक ज़िंदा रख्खने वाला …
दुन्या के कोने कोने में पहुंचाने वाला….
बच्चे बूढ़े हर किसी की जुबाँ तक पहुँचानेवाला….
बातों को अमरत्व का रस-पान करनेवाला….
बातों को बताने वाला या कहने वाला नहीं…
बल्कि सुनने वाला होता है….
खैर छोरो जाने भी दो…
तुम भी क्या कहोगी …
कहाँ फंसा दिया…
बातों की इन भूलभुलैय्या में….
बातो के अहम व गैर अहम वाले सवालों के चक्रव्हयु में …
तुम तो माँ के पेट से ह सीख कर आने वाला अभिमन्यु तो हो नहीं…
तुम से भला कैसे टूटेगा…
हवस के शिकारी शहरी लड़के का ये चक्रव्हयु…
तुम तो ठहरी गांव की इक लड़की…
बड़ी-बड़ी आंखों वाली…
भोली भाली सांवली सलोनी सी…
नादान सी नासमझ सी अल्ल्ढ़ सी लड़की…
सरसों का खेत और तितली संग उरना…
पास के तालाब किनारे थोड़ी बहुत शरारत व मस्ती…
आँगन का झाड़ू बर्तन…
माँ और बाबु की सेवा…
फिर फुर्सत मिले तो…
रात को छत पर जुगनुओं के संग खेलना…
दूर आसमान पर टिमटिमाते तारों से बाते करते करते सो जाना…
बस इतनी सी ही तो दुन्या थी तुम्हारी….
है न….
तुम किया और कैसे समझोगी….
बात की बातों वाली इन भूलभुलैय्या को …
तुम्हे तो अपने उलझे बालों को भी सुलझाना नहीं आता…
इतनी उलझी बातों को भला कैसे सुलझा पाओगी..
तुम्हे तो गोल गोल घूमना भी नहीं आता…
और मै तुम्हे कब से गोल गोल ही घुमा रहा हूँ….
तुम्हे अंदर से गुस्सा आ रहा होगा…
सोच रही होगी…
ये क्या बदतमीजी है…
जो भी कहना है साफ़ साफ़ कहो…
तो सुनिए मैडम…
ऐसा है…..
मै भी साफ़ साफ़ और “टू द पॉइंट ” बात करने का ही कायल हूँ…..
साफ़ साफ़ ही बाते कर रहा हूँ …
बस थोड़ी सी दिक्कत है…
मै ये नहीं समझ पा रहा कि…
बात जो मै तुमसे कहना चाह रहा हूँ…
वो बात जरुरी है या नहीं है …
वो मेरी जुबाँ से तुम्हे सुनने लाइक है या नहीं है…
वो बात मुझे कहने की इज़ाज़त है भी या नहीं है…
क्योंकि…
अब तुम किसी की बीबी हो ..
बीबी तो खैर तुम मेरी भी थी, झूठ वाली ही सही…
किसी के बच्चे की होने वाली माँ हो …
हमारे बीच अब पहले सी बात नही…
हमारे दरमियाँ एक लछमन रेखा भी तो है…
जिसे तुमने ही तो खिंचा है…
अब तुम्ही बताओ क्या करू…??
वो बाते जो मुझे तुमसे कहनी है …
तुम्ही बताओ…
कह दूँ या रहने दूँ…
देखो, ज्यादा परेशान न हुओ…
इस मसले का एक रामबाण हल है…
जानती हो क्या…
कुछ याद आया …
नहीं…
अरे तुमने ही सिखाया था…
अब भी याद नहीं आया…
कोई बात नहीं…
मै बताता हूँ…
बाते जो तुमसे कहना चाहता हूँ…
उन बातों को खामोश ही रहने दो…
क्योंकि…
एहसासों को शायद लफ्जों की जरुरत नहीं होती…