एहसासों की माला
एहसासों की माला सिमरूं मैं
सिमरूं पी के नाम ये माला मैं
उगती रहेगी ख्वाबों की खेती
लौटी वापस मायूसी की खेती
खूशबू बन कर महकेगा जीवन
दिल की धड़कन में धडकूंगी मैं
न देख पाओगे, न छू पाओगे
हरपल मैं रहूँ गी आसपास मैं
बादल यूँ ही नभ में एहसासों के
बिन बरसे सावन सूखे, भीगे खेती
शीला गहलावत सीरत