“एहसासों की पोटली”
“एहसासों की पोटली”
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लटका के कंधों पर
उम्मीदों के झोले
उनमे भरके
कुछ ख्वाब
कुछ फरमाइशें
कुछ शिकायतें
कुछ एहसास
कुछ विश्वास
चल देता हूँ रोज
एक नए सफ़र पर
होठों पर मुस्कान सजाये
कन्धों को ऊंचा उठाकर
लौटता हूँ
हाथ में लिए
एक छोटी सी पोटली
पीछे छुपाकर
और बिखेर देता हूँ
अचानक से खोलकर
एक मुस्कान
स्पंदित हो उठता है ह्रदय
सुनकर वो मीठी सी किलकारी
और पीछे छूट जाती हैं
सारी थकान
सारी परेशानियां
जब सुनता हूँ
म्मम्मम म्मम्मम
उम्ह उम्ह उम्ह्ह
कुछ ऐसी आवाजें
जीवंत हो उठती हैं आँखें
जब देखता हूँ उसके
छोटे छोटे लबों पर
बिना दांतों वाली मुस्कान
और देखता हूँ
नन्हे नन्हे हाथों को
मचलते हुए |
“सन्दीप कुमार”