एहसासे- नमी (कविता)
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एहसासे- नमी
माना आज अश्कों में निर है
मॉम से पिघल रही हूं
मगर
आएगा एक दिन वो भी
कि एहसास सीने में दफन हो जाएंगे
बन जाऊंगी मैं भी पत्थर
जिसके निशाँ तो होंगे
मगर दर्द नहीं होगा
माना आज तेरी दोस्ती में
हल्की-हल्की टूट रही हूं मैं
मगर
आएगा एक दिन वो भी
टूटूंगी ऐसा कभी जुड़ ना पाऊंगी मैं आंखों में बहता नीर सूख जाएगा रेगिस्तान में रेत की तरह
ना बच पाएगी इसमें रिश्तो की नमी
बस सूख जाएगा
एक दिन यह भी
जिसमें ना बचेगी कोई एहसास -ए नमी