एहसान
एहसानमंद को न कर्ज़दार बनाओ।
उसकी नज़र में उसको न लाचार बनाओ।
ज़िंदा रहे ज़मीर और इज़्ज़त रहे क़ायम-
दोनों के दरमियांँ नहीं दीवार बनाओ।
एहसान करके खुद से एहसान जताना क्या।
कोई काम करके लोगों को बात बताना क्या।
सबके दिल-ओ-नज़र में बसने के लिए ऐसे-
ख़ुद ही की नज़र से यूंँ इंसां को गिराना क्या।
कर के जता दिया तो किया काम किसलिए।
यूंँ पीट कर ढिंढोरा किया नाम किसलिए।
आंँखों की शर्म दिल की गैरत बचाइए-
बनते हैं तमाशा यूंँ सरे-आम किसलिए।
रिपुदमन झा ‘पिनाकी’
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक