एतमाद
शब -ए -अलम के सियाह लम्ह़े गुज़र जाएंगे,
खुशियों से भरी सहर के उजाले पल फिर आएंगे ,
हौसलों की श़िद्दत कभी छूटने ना पाए ,
उम्मीदों की कड़ी कभी टूटने ना पाए ,
फ़तेह का जज़्बा कभी कम ना होने पाए ,
आस का परचम कभी झुकने ना पाए ,
ग़र इरादे बुलंद होंं तो ख़ुदा भी साथ होता है ,
वरना खौफज़दा इंसां जंग लड़ने से पहले ही हार मान लेता है।