एतबार
कयूँ चाहते हो मैं अब एतबार कर लूँ,
थमी सांसों से तुम्हारा इंतज़ार कर लूँ ।
हर साँस में बसा लिया था तुमको,
इंकार में अब कैसे इकरार कर लूँ।
गम नहीं रहा अब तुम्हारे न लौटने का,
यादें मिटाने का अब कोई इंतज़ाम कर लूँ।
दस्तक तो देते हो रह-रह कर ख़्वाब में तुम,
खामोशियों से ही तुम्हारे प्यार का इज़हार कर लूँ ।
भले आईने सा टूट कर टुकड़े हुआ बेचारा ये दिल,
क्यूँ न हर टुकड़े में ही तेरे अक्स का दीदार कर लूँ।
डॉ दवीना अमर ठकराल’देविका’