एतबार मांगा था
हमने दिल का करार मांगा था
अपने हिस्से का प्यार माँगा था।
भूले थे हम तो सब गिले शिकवे
तू भी हो खुश गवार माँगा था।
सहरा में फिर से खिल उठें कलियाँ
हमने बाग़े बहार मांगा था।
तू तो गद्दार बगल में निकला
हमने तो एतबार मांगा था ।
यूँ ही खुश हो रहें मेरे अपने
हमने यह बार बार मांगा था।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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