एडजस्टमेंट
मोहन के पास एक भैंस थी जिसका नाम मांडी था। सारे परिवार के लोग इसी का दूध पीते थे। दूध भी तो ढ़ेर सारा देती थी । घर के सदस्यों के साथ-साथ घर के कुत्ते-बिल्लियां भी उसका दूध पीकर निहाल हो जाते थे। पशुपालन विभाग द्वारा लगाई जाने वाली नुमाईशों में मांडी ने अनेकों ईनाम जीते थे। दूध प्रतियोगिता में प्रथम आने पर सरकार द्वारा मांडी का चालीस हजार का बीमा किया गया। मोहन और उसकी पत्नी मांडी को अपने बच्चों से भी ज्यादा प्यार करते थे।
मांडी भी बड़ी खुश रहती थी। उसने दो कटड़ियों को जन्म दिया। वे भी बड़ी हुई। घर में दूध की गंगा बहने लगी। समय बीता मांडी बूढ़ी हो गई थी, शरीर जवाब देने लगा, कई समस्याएं हो गई थी। एक दिन अचानक उसके पेट में जोर का दर्द उठा। अलसर फ ट गया था, हालत नाजुक थी । अस्पताल ले जाया गया। वहां उसका तत्काल ही आप्रेशन करना पड़ा। सर्जन साहब ने जवाब दिया बचनी मुश्किल है, हो सकता है कभी दिन निकाल दे। पर सर्जन साहब, ये मर गई तो मेरा सारा धंधा चौपट हो जायेगा। वैसे भी मुझे आजकल पैसों की बहुत जरूरत है। मोहन ने गिड़गिड़ाते हुए सर्जन बाबू से कहा।
कोई बात नहीं मोहन मांडी का बीमा है ना, वो भी चालीस हजार का। वो तुम्हें मिल जाऐंगे। सर्जन साहब ने मोहन को समझाते हुए कहा। पर साहब बीमे के दो दिन बचे है उसके बाद पैसे थोड़े ही मिलेगें । मैं तो उजड़ जाऊंगा, साहब । मोहन ने दर्द भरे लहजे में कहा। सर्जन साहब ने कंपाउडर से जहर का इंजैक् शन मांगते हुए कहा ये इतनी बड़ी समस्या नहीं है मोहन, हम एडजस्टमेंट कर लेंगे। और बेचारी मांडी क्भ् दिन पहले ही धरती से अलविदा हो गई।