एक हैं हम
धधक रहे हैं दिल में शोले, अब ये आग बुझेगी कैसे।
बैर भाव पाले हैं दिल में, अमन की बात बनेगी कैसे।।
कैसा घना अंधेरा आया, बरूदों का धुंआ है छाया।
रक्त है देखो कितना सस्ता, सबका अलग अलग है रस्ता।
जुदा जुदा हैं सबके रंग, धनी चुनर अब रंगेगी कैसे।।
कोई असमियां कोई बंगाली, कितने रंग हैं कितनी बोली।
कोई हरा है कोई केसरिया, किसी का चंदा किसी की दरिया।
खंड खंड में बंटे हुए हैं, अखंड भारत बनेगा कैसे।।
जाति धर्म का भेद मिटाएं, हम केवल भारतीय कहलाएं।
भारत मां के सब हैं बेटे, क्या बड़ेे और क्या हैं छोटे।।
एक रंग में रंगे हों ऐसे, गुलदस्ते में सजे हों जैसे।
बैर भाव पाले है दिल में, अमन की बात बनेगी कैसे।।
उमेश मेहरा (शिक्षक)
गाडरवारा ( m,p,)