“एक ही जीवन में
“एक ही जीवन में
हर बार,पूरा होते-होते,रह जाना ‘अधूरा ही’
शायद, यही नियति है जीवन की !!
और..हर बार,उसी अधूरेपन से,होती है ‘शुरुआत’ नई
यही तो जीवन है !!
इसी तरह, हर बार,हर नई शुरुआत,जन्मती है
नई-नईआशाएं ,शायद इसीलिए मिल जाते हैं
एक ही जीवन में
जीवन कई-कई !!”