एक ही मुकाम
मेघ हुआ,
घास भीगी,
कास भींगे,
दुपहरी उदास भींगी,
बुढ़िया उदास भींगी,
मिट्टी का प्यार भीगा,
मन का कुछ भार भीगा,
पत्ती फूल फल भीगे,
चित के सब मल भीगे।
हिली पवन,
घास हिली,
हिली लता,
पेड़ हिला,
गर्मी का हाल हिला,
लता झुमी,
गुल्म हिला,
पेड़ दिखे,
मस्त मौला।
नन्हीं नन्हीं बूँदों, तुम्हें,
प्यासे सूखे पौधों की,
झुकती हिलती गर्दन का,
अल्हड़ हवाओं की,
मस्ती शरारत का,
लाखों सलाम!
इन प्यासे होठों की,
सूखी दुआओं का,
माटी की रग-रग में,
दे दो पैगाम-
“सब बढ़ें -एक साथ!
सब चलें – एक साथ!!
दुनिया के लोगों का एक ही मुकाम!!!