” एक हद के बाद”
मेरी चुप्पी को सब मेरी,
कमजोरी समझते हैं।
रहूं खामोश गर मैं तो,
सब मेरी ग़लती समझते हैं।
रहेंगे जो साथ मिलकर सब,
तो रिश्ते खूब चलेंगे।
क्योंकि जहां हद पार होती है,
वहां रिश्ते बिखरते हैं ।
जब धैर्य की सारी
सीमाएं टूट जाती हैं ,
वहां तब अदब करने की
वजह सब छूट जाती है
निभाऊं झुक कर मैं रिश्ते
मुझे कमजोर न समझो।
हैं ए संस्कार जो मेरे,
मैने अपनी मां से पाए हैं।
ए रिश्ते फूल से कोमल,
अहम में आके न तोड़ो।
बंधे हैं कच्ची डोरी से,
इन्हें तुम प्यार से रख्खो।
लगाया जोर जोर इन पर,
तो रिश्ता टूट जाएगा।
घमंड में आके जो खींचा,
तो धागा टूट जाएगा।
क्योंकि जहां हद पार होती है,
वहां रिश्ते टूट जाते है।
जो नजरों से उतर जाता,
न उसका मान हो पाता।
रूबी चेतन शुक्ला
अलीगंज
लखनऊ