एक स्वप्न
एक तरइया पापी देखे
दो दिखें चण्डाल को ।
तीन तरइयाँ राजा देखे
सब दिखें संसार को ।
होश संभाला जब से मैंने
तब से गगन निहारा ।
अंधियारा आने के पहले
नज़र पड़ा इक तारा ।
बिना पलक झपकाये मुझको
दिखे घूरता प्रतिदिन।
मेरे पापी होने का
आभास कराता निशदिन।
तीन तरैयाँ एक मुश्त हो
देख न पाया अब तक।
राजा होने का सपना मन
आखिर पाले कब तक ?
तभी अचानक सूर्य अस्त पर
देखे पाँच सितारे ।
नृप हरिश्चंद्र के तीन और
दो चाण्डाली तारे ।
वर्तमान में अब भी देखूँ
नील गगन में तारे ।
शायद तीन तरैयाँ दिखकर
बदले भाग्य हमारे ।