“`एक सोच ***
क्यूँ होती हैं आँखें नम
क्यूँ बिछड जाते हैं लोग
कैसा खेल रचाया है
मेरे रब्बा
क्यूँ नहीं होते हैं मेल.
तेरी सूरत
तेरी शोहरत
तेरा सब कुछ
तेरे साथ नहीं जाएगा
वकत है अभी भी,
कुछ कर ले बन्दे
मानवता के लिए यही
यहाँ सब काम आएगा.
अजीत तलवार