//एक सवाल//
क्यों करते हो आंख मिचौली,
मुझसे क्यों शर्माते हो।
दिल में क्या-क्या राज छुपाए,
अब तक नहीं बताते हो॥
माना एक गलतफहमी को,
हमने वर्षों पाला था।
पर तुमने भी कुछ बातें कर,
हमको भ्रम में डाला था॥
गुत्थी अब भी उलझी है,
जिसको न तुम सुलझाते हो।
दिल में क्या-क्या राज छुपाए,
अब तक नहीं बताते हो॥१॥
वर्षों से जो दबी हुई थी,
वह चिंगारी दहक उठी।
सुनकर मीठे बैन तुम्हारे,
प्रीति की बगिया महक उठी॥
अब सोए अरमान जगाकर
क्यों इतना तड़पाते हो।
दिल में क्या-क्या राज छुपाए,
अब तक नहीं बताते हो॥२॥
बिना तुम्हारी यादों के,
मुश्किल से जीना आया है।
मीठी-मीठी बातों से,
तुमने फिर से भरमाया है॥
चैन चुरा कर मौन हो गए,
‘अंकुर’ बड़ा सताते हो।
दिल में क्या-क्या राज छुपाए,
अब तक नहीं बताते हो॥३॥
– ✍️ निरंजन कुमार तिलक ‘अंकुर’
जैतपुर, छतरपुर मध्यप्रदेश