एक सरल मन लिए, प्रेम के द्वार हम।
एक सरल मन लिए, प्रेम के द्वार हम।
कुछ अधूरे वचन, सौंपकर आ गए।।
कि राह में छोड़कर, तुम चले तो गए,
रास्ता पर हमें, पूर्ण करना तो था,
जिसके जीवन का कोई न आधार था,
उसकी जीवन कहानी बनानी तो थी।
इस तरह प्रेम को, ढूंढकर खो गए।
स्वप्न को छोड़कर, लौटकर आ गए।।
एक सरल मन लिए, प्रेम के द्वार हम।
कुछ अधूरे वचन, सौंपकर आ गए।।
जिंदगी के लिए हम जिए जा रहे,
पर हथेली में जीवन की रेखा न थी,
रात को बेचकर स्वप्न ढोते रहे,
इस तरह शून्य जीवन को जीते रहे।
भाग्य रेखा हथेली में बन जाएगी,
शून्य जीवन में गर फिर से तुम आ गए।
अभिषेक सोनी
(एम०एससी०, बी०एड०)
ललितपर, उत्तर–प्रदेश