एक सड़क जो जाती है संसद
एक आम आदमी चिल्लाता है
मेरे गाँव की सड़क अभी तक नहीं बनी
घोर उपेक्षा है
दूसरा स्वर में स्वर मिलाता है
वह भी चिल्लाता है
मेरे गाँव की सड़क तो एक बरसात भी नहीं झेल पायी
तीसरा धीरे से बोलता है
ज़रा ठहरो
मुझे समझो
अगले चुनाव में मुझे पहुँचने दो संसद
मैं सबकी आवाज़ उठाऊँगा
सड़कें नयी बनवाऊँगा
निधि अपनी होगी
आदमी भी अपने होंगे
सड़क बनेगी पक्की
यह वादा है
चिल्लाते क्यों हो
तुम्हारी चिल्ल-पों कौन सुनेगा
अपनी हद में रहो
सड़क है
वह टूटेगी ही
सड़कें बनती ही हैं
टूटने के लिए
नहीं टूटेंगी
तो कैसे घोषित होंगी
वादों के पिटारे से
तथाकथित घोषणा-पत्र से ।
एक यक्ष प्रश्न है
आप चलते ही क्यों हैं
सड़क पर
यह भी जान लें
सभी सड़कें रोम नहीं जातीं
न सकुशल पहुँचातीं हैं
आपको घर
पर यह सच है
सभी सड़कें जाती हैं
संसद को
अदृश्य रूप में
जन-प्रतिनिधियों के साथ
अपने मूल स्वरूप में
उनकी जेबों में बैठकर ।