एक शाम
एक शाम कमाया था
एक रात लुटाई थी
टूट गया हर ख्वाब
जब वो हमें भूलाई थी ।।
कायनात रोया, साथ
सिसकियां गलियां भी ली
शहर-शहर तमाशा हुआ
जहर हमने दुनिया की पी ली।।
ख़्वाबों का मेरा घर तुझ से था
अरमानों का शहर तूझ से थी
तेरे बिना क्या था मेरा यहां
मेरे सांसें भी तो तुझ से थी।।
नीतू साह(हुसेना बंगरा)सीवान-बिहार