एक शहंशाह का मजाक
किसी शहंशाह ने बनाकर हसीन ताजमहल ,
गरीबों की मुहोबत का उड़ाया था मजाक ।
मगर सच तो यह है की उसी शहंशाह ने ही ,
मुहोबत जैसे पाक चीज का उड़ाया मजाक ।
बेगम को बच्चे पैदा करने की मशीन बनाना ,
कैसा आशिक है !ये इसने बनाया उसे मजाक ।
औरत को औरत ना समझकर समझा खिलौना,
एक नहीं कई जिंदगियों का इसने बनाया मजाक ।
गरीबों की मुहोबत नहीं बना सकती ताजमहल ,
लेकिन गरीबों की मुहोबत होती है सबसे पाक ।
सच्चा आशिक वो है जो राह ऐ वफा में मिट जाता है,
मगर कभी नहीं बनाता अपने महबूब को मजाक ।
इसीलिए “अनु ” को एक शहंशाह पर तो यकीन नहीं,
मगर गरीबों की मुहोबत पर जरूर एतबार हैं।
गरीबों की मुहोबत इबादत होती है ,
नहीं होती वो मजाक ।