एक व्यंग्य आज की शिक्षा
दो दोस्त मोतीलाल एवं धोती लाल आपस में बातें कर रहे थे।
यार लास्ट पेपर हो गया आज बोर्ड का अपन तो फ्री।
अब साला सारा का सारा लोड टीचर पर शिफ्ट हो गया। बेटे को पता चल जायेगा नम्बर कैसे देते है? हमारी कोपी देखकर टेंशन में आ जायेगा। नम्बर कहाँ पर देगा? अरे इसमें टीचर का क्या बिगड़ेगा? फ़ैल तो हम ही होंगे ना।
अरे कैसी बात करता है ?अपन को पढने के पैसे थोड़े ही मिलते है। इनको तो पढ़ाने के पैसे मिलते है। फैेल अपन होंगे और सरकार कान खेचेंगी इनके। रिजल्ट कम कैसे रहा ?
क्या करते हो ?
फोकट की तनख्वाह लेते हो ?
कुछ तो पढ़ाया करो।
लगे रहते हो ,फेसबुक वाट्स एप पर, गपशप में। अब टीचर किसी भी जगह का हो, नम्बर देना ही पढ़ेगा ।
हाहा।
मजा आ गया।
साल भर ज्ञान देते है, तैयारी करो तैयारी करो। बोर्ड परीक्षा है ,पता चल जाएगा।
अब समझे बेटो को खुद के रिजल्ट की चिंता रहती है ,और डांट पिलाते है हमको।
अरे हमें तो सरकार ने मस्त तोहफा दे रखा है।
कोई हमसे नही बोलेगा ,तुम फेल कैसे हुए? और मोदी जी ने भी बोल दिया ,परीक्षा में फेल होना कोई जिंदगी में फेल होना नही है।
मै ही फिस्स्ड्डी था पढाईमें।
अब सरकार इनको पढ़ाने भी नही दे रही, एक तनख्वाह में 40 काम करवाती है ,जनगणना प्लस पोलियो शौचालय…. जाने क्या क्या? और उस पर रिजल्ट भी दो ।याद आ रही है, मास्टरों को नानी। अपन को मार भी नही सकते, वरना यह अपना गुस्सा अपन पर निकालते। अब क्या करें?
रिजल्ट डाउन रहते ही बीपी चेक कराने जायेंगे बेटे। हाहा ।
ऐसे मत बोल यार हमारे गुरूजी है ।सम्मान कर।
अरे गुरु को कोई थोड़े ही बताता है ।कैसे पढाते है ?इनको तो सरकार बताती है। अपनी मर्जी से यह तो तीन अर चार सात होते है ,भी नही कह सकते। और उस गणित वाले सर की तो हालत ही पतली है, पूरी क्लास में कोट फॉर बेटा साईंन फॉर थीठा कहता फिरता है ।कोई नही समझता। अपन तो आठवी में जाकर नाम लिखना सीखे थे। अब पढाओ क्या खाक पढ़ाओगे?
मुझे तो सच्ची रे ,दया आने लग गई मास्टरों पर।
बिचारे घर पर कोपी जांचते है ना सर पकड़ कर बैठे रहते है। कहाँ नम्बर दे। चार पांच बार तो जर्दा खाते है तीन चार चाय पी जाते है। चश्मा पोंछते रहते है बार बार। अपनी राइटिंग अपने ही समझ नही आती इनके क्या आएगी। और कुछ तो पास बुक लेकर उत्तर ढूंढ़ते फिरते है, फिर कहते है।दुष्ट ने कुछ नही लिखा बोलते है फिर चेक करते है। 15 दिन में 500 कोपी चेक करनी है।लगे रहते है रात दिन। अपन को मुर्गा बनाते थे, अब खुद गधा बने हुए है।अपन ने भी 1975 में महात्मा गाँधी से इमर्जेंसी लगवा दी। तो टीचर बोलता है इंदिरा गाँधी ने लगाई या महात्मा गाँधी ने बच्चे ने इमर्जेंसी तो सही लगाई है।दे नम्बर दें नम्बर ।और अपन पास। भाई रे मजा आरहा है।
अपन तो रोल नम्बर तक टीप के लिख आये थे पर घोड़े की पूंछ जैसी चोटी वाली मेडम ने पकड़ लिया और रोल नम्बर सही करवाए।
अरे यार मैं समझ नही पा रहा हूँ। तुझ पर तरस खाऊ या खुश हो जाऊं। खैर च चलते है अपन तो फ्री आज। पार्टी करते है।
******** मधु गौतम