एक वीर सैनिक का ताबूत
लो एक और ताबूत आया जंग ए मैदान से ,
जैसे एक डोली आई सज के कई फूलों से ।
बज उठी सैन्य धुन उसके स्वागत के साथ ,
गुणगान हुआ उसकी असीम शौर्य गाथा से।
कुर्बान हो गया मगर देश का मान बढ़ा गया,
अमर शहीदों में नाम लिखवाया अपने लहू से।
मगर कुर्बानी केवल जान की ही नहीं उसने दी,
उसने वतन के लिए मुंह मोड़ा अपने हर सुख से ।
भाई बहन ,माता पिता का दुलार छोड़ा उसने ,
अपने फर्ज के लिए नाता तोड़ा घर संसार से ।
अपनी अजन्मी संतान के प्रति दो टूक कलेजा रख,
अपनी पत्नी को अलविदा कहा उसने द्वार ही से ।
इस ताबूत में बंद है एक नवविवाहित युवा का शव,
जिसने मुंह मोड़ा अपनी हर खुशी और अरमान से।
धन्य हुई भारत माता अपने ऐसे वीर सपूत पाकर,
जिन्होंने इसका आंचल रंगा अपने ही खून से ।