एक वादा था हमारा
सामना फिर से अगर हो तो भला क्या कीजिए
क्या सजा दे बेवफा को फैसला क्या कीजिए
ये जमाना छोड़ आए जिसकी खातिर दोस्तो
छोड़ कर फिर भी गया वो बेहया क्या कीजिए
एक वादा था हमारा हम न होंगे अब जुदा
खुश अगर है वो बिछड़ कर तो गिला क्या कीजिए
साँस बेशक चल रही है मैं मगर ज़िंदा नहीं
ज़ख़्म ही अब भर गए हैं तो दवा क्या कीजिए
फूल से ज़ख्मी हुए थे दोष कांटों का नहीं
खींच लाई थी महक ये अब हवा क्या कीजिए
वो गए आँखें गई अब ये नज़ारे कुछ नहीं
ख्वाब सारे अब अधूरे दूसरा क्या कीजिए
आखरी है वक्त ‘सागर’ जी के भी हम क्या करें
उस बिना कटता न तन्हा रास्ता क्या कीजिए