एक लेख
घमण्ड करना अलग बात है,खुद के वजूद को बचाये रखना अलग बात है ,बल्ब के फ्यूज होने को इंसान के रिटायर से जोड़ना मुझे तो समुचित नहीं लगता । समाज आपको उस नजरिये से देखता है जैसे आप दिखाना चाहते हो । पद का पॉवर पद पे रहते काम आता है किंतु आपके सोचने की शक्ति खुद को एक्सप्लेन करने की शक्ति आपको उतना ही मजबूत बनाती है जितना आप पहले थे । पता है हम किस माहौल में जीते हैं, हम इस माहौल में पले बढ़े हैं लोग क्या सोचेंगे कोई भी काम करने से पहले सबसे पहले यहीं बात दिमाक में बिजली की तरह कौंध जाती है , मेरा ये मानना है इंसान को अपने विचारों की भी कद्र कर लेनी चाहिए उसे खुद पर और खुद के विचारों पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए ,बशर्ते आपको यह निश्चित कर लेना चाहिए कि आप जो कर रहे हैं उससे किसी को कोई क्षति नहीं होने वाली । मुँह मिट्ठू होना किसी को नागवार लग सकता है किंतु इससे किसी को हानि होने वाली नहीं है ।अगर आप वह तारीफ किसी को नीचा दिखाने के लिए कर रहे हैं तो निश्चित ही आप पतन के दौर से गुजर रहे हैं । दूसरा व्यक्ति को अपने विवेक व परिस्थितियों के अनुसार खुद को जताना आना चाहिये । अगर आपने ऐसा परिवेश तैयार किया है जिसमे कोई छोटा बड़ा नहीं होता दस वॉट बीस वॉट सौ वॉट हजार वॉट बल्ब सिर्फ बल्ब तक ही सीमित रहे उसका कार्य रोशनी फैलाना है ।अगर आप इस प्रकार के विचारों के दायरे में रहते हैं तो लोगों की नजरों में आपका कद वैसा ही बना रहता है पद पर रहते हुए भी और रिटायरमेंट के बाद भी । मुख्य विषय सोच और नजरिये का है एक व्यक्ति अपने रुतबे को किन लोगों के बीच जाहिर कर रहा है किस परिस्थिति में जाहिर कर रहा है उसमें अभिमान है या स्वाभिमान इस बात को दोनों ही अच्छे से समझते हैं । जताने वाला भी और वह भी जो सुन सुन कर पक गया है । अगर कोई एक आदमी एक ही व्यक्ति को अपनी तारीफ सुनाता है तो यह श्रेष्ठ अभिव्यक्ति नहीं है दोनों ही मूर्खता कर रहे हैं अगर पहले दिन ही मामला क्लीयर हो जाता तो कहानी आगे बढ़ती ही नहीं जैसे बल्ब की, किसी भी वस्तु या इंसान का महत्व हमने अपने स्वार्थ के आधार पर तय कर लिया है जब तक स्वार्थ है तब तक प्रीत और मोह है यहीं ढर्रा चल पड़ा है किन्तु मुख्य विषय भाव का है और यह भावगत बदलाव नई पीढ़ी में अचानक से नहीं आ गया है इसे आने में पीढ़ियों का योगदान है । भाव से अभिप्राय देखो लोगों के पास आज भी कोई न कोई चीज ऐसी हैं जिनसे उनका लगाव और जुड़ाव तो है किंतु उनसे उनका कोई स्वार्थ सिद्ध नहीं होता मेरे पास आज भी वो घड़ी है जो मैंने पहली बार खरीदी थी आज वो ख़राब है लेकिन मैंने फ्यूज बल्ब की भाँति मैंने उसे फैंक नहीं दिया उससे मेरा भावनात्मक जुड़ाव आज भी है , और यहीं बात महत्व रखती है पद रुतबा इसके आगे कोई महत्व नहीं रखता । मेरा यह मानना है कि खुद को जताओगे नहीं तो लोग तुम्हें अकिंचन मानकर ठुकरा देंगे किन्तु इन्हीं लोगों के बीच अगर तुमने अपनी काबिलियत को सिद्ध कर दिया तो आपका सम्मान मरणोपरांत भी समाप्त होने वाला नहीं है ।