एक लेख……..बेटी के साथ
शीर्षक – एक लेख (बेटी के साथ)
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सच आज जो लिखा, बस आज नहीं आज में ही समझेंगे हम एक सोच और समझ ही शब्दों को जन्म देती हैं। हां सब। जानते हैं। क्षणभंगुर यह शरीर पंचतत्व में विलीन हों जाएगा। बस सोच यह मेरी, हां सच सब तेरा मेरा रिश्ता और कर्म से नाता जो है।……………मोह माया बस किरदार हमारा हैं।
न ईश्वर न कुदरत ने कहा बस जन्म जहां लिया बस वही सच तूने समझ लिया……………
सच तो बस इतना, कि न कोई अपना न पराया बेटी को जन्म देकर पिता ने किया आज तुझे दूसरे के साथ, बस ऐसा क्यूं न रीति न रिवाज मैंने भी तो घर में जन्म लिया । और जीवन के सच में हकीकत और सच बन जाऊं बेटी मां नारी हूं। तब जरुरत तो एक समान है फिर भेद नारी से क्यूं बेटी बनी वर घर बेटा ले आऊं………. दुल्हन बन के बेटी न बन पायी बेटी,बस अब सोच तुम्हारी बदले बेटी भी बेटा बन जाएं।
एक लेख लिखा है मेरी बेटी तेरी बेटी जीवन में अपना पराया तो बस एक सोच हैं बेटी जो बहु बनी हैं नैना बरस रहे हैं बस सच सच कहना जन्म मैंने भी पाया है। वर मैं घर ले आऊंगी बेटी बन बेटा भी वर घर ले आऊंगी…….……सोच हमें बदलनी है
नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र