एक लघु कथा —आर के रस्तोगी
एक बार एक कागज का टुकड़ा हवा के वेग से उड़ा और एक पर्वत के शिखर पर जा पहुँचा | पर्वत ने उसका बड़े आदर से उसका स्वागत किया और कहा,” भाई ! आप यहाँ कैसे पधारे ?” कागज ने कहा, “अपने दम पर “| तभी एक हवा का झोकाआया और कागज के उस टुकड़े को उड़ा कर ले गया | कागज का दुकड़ा अगले पल नाली के गंदे पानी में गिर गया और कुछ समय के बाद वही गल गया |
जो दशा एक कागज के टुकड़े की है ,वही दशा आजकल हमारी भी हो गयी है |
पुन्य की अनुकूल वायु का वेग आता है तो वह हमे शिखर पर पहुचा देता है ,और पाप का झोका आता है तो वह हमे धरातल पर पहुँचा देता है |
किसका मान ? किसका सम्मान ?
संत लोग कहते है कि जीवन की सच्चाई समझो | संसार के सारे सयोंग हमारे आधीन नहीं है ,कर्मो के आधीन है | कर्म कैसी करवट बदले ले पता नहीं लगता ,कोई भरोसा नहीं | इसलिए कर्मो के आधीन परिस्थितियों का कैसा गुमान| भगवान व कर्मो पर विश्वास कीजिये | समय के साथ सब कुछ ठीक हो जायेगा |
आर के रस्तोगी