एक रूप हैं दो
जगतपिता जगजननी दोनों
एक रूप हैं दो कहलाए
तुम में मुझ में भेद न कोई
दोनों उसी एक के जाए
उसका ही सारा जहान यह
वह ही नर, वह ही है नारी
यह रहस्य जो जान गए हैं
वे सारे मनुष्य अवतारी
सब कहते हैं ब्रह्म एक है
वही अनेक बना करता है
वह ही जग का सर्जक पालक
वह ही जग का संहर्ता है
वह अदेह, नाना रूपों में
देह उसी की विद्यमान है
ज्ञाता वही, वही अज्ञानी
वही सृष्टि का परम ज्ञान है
आओ हम उसके चिन्तन में
जीवन जिएं अहर्निश ऐसे
जल में जलज, पंक में पंकज
सरसी में सरसीरुह जैसे
******* महेश चन्द्र त्रिपाठी