एक रूपक ज़िन्दगी का,
एक रूपक ज़िन्दगी का,
इक अमावस का दिया हूं।।
इक अधूरे प्रेम की,
संकीर्णता संचित किया हूं।।
मै नवोदित अति विवेचित,
फिर अनूदित काव्य जैसीं।।
पूर्णता में रिक्तता की ,
इक कहानी श्राव्य जैसी।।
एक अवलोकन नया हूँ,
दूरगामी सोंच जैसा।।
प्रतिफलित उत्पाद के,
व्यापार में लाभांश जैसा।।
हैं दरारें भित्तियों मे,
शोर जो उस पार करती।।
दोषमय अधिगम प्रणाली,
पंख अपने ही कुतरती।।
राजनय का खेल पूरा ,
चल रहा संवर्ग मे।।
है सार पूरे ग्रंथ का,
लिपिबद्ध अंतिम सर्ग मे।।
पीर को अपनी कदाचित ,
प्यार से हम कह न पाए।।
ऐ सखे थे प्रश्न ढेरों,
एक उत्तर दे न पाए।।