एक रात
एक सर्द काली रात में,
हम थे मोहब्बत के लिहाफ में l
मर्यादा की सिलवटें थी जो,
उन्हें तह कर रहे थे l
वो नफरत के चोले में,
दबे पाव आये l
दो लाशें थी, पूरी साबूत,
एक धड़ अलग, एक सिर अलग l
वो उसी रात इंसानियत को,
बेमर्याद कर रहे थे l
एक सर्द काली रात में,
जब हम मर्यादा की सिलवटों,
को तह कर रहे थे l