एक रात की बात
एक रात की बात
बैठी रात के एकांत में,
कागज कलम लिए हाथ।
अचानक एक आवाज आई,
लड़ाई की बौछार लाई।
देखा तो दो नारियां थी,
अनुपम सुंदर प्यारी थी।
पूछा जो झगड़े का हाल,
बताएं वे दो खुद को बलवान।
पूछा जो मैंने कौन हो दीवानी?
प्रत्युत्तर में बताया हूं मैं जवानी।
मुझसे है दुनिया भरमाई,
बन- ठन के नित ले अंगड़ाई।
मुझसे आए बसंत बहार,
भौतिक- सुखों की लाए बौछार।
मैं जीवन में एक बार आऊं,
तीन लोक का खजाना लुटाऊं।
अब बारी दूसरी की आई,
नाम अपना सुंदरता बतलाई।
बोली मुझसे जवानी रंगीन,
तभी तो देखे सपने हसीन।
बिन मेरे जवानी कुरूपा,
कैसे कहलाती खुद को स्वरूपा।
संग मेरे इठलाए- इतराए।
जो छोड़ दूं , कीचड़ बन जाए।
जवानी में जब रंगत लाऊं,
सारे जग का आकर्षण कहलाऊं।
दोनों की बातें सुनते ,
निकल गई मेरी रात।
मैने कहा-
खत्म करो यह झगड़ा,
और सुनो मेरी बात।
इस नश्वर संसार में क्या जवानी,
क्या रूप,
यह तो घटता समय है कभी छांव ,कभी धूप।
बिन जवानी के रंगत फीकी,
बिना रंगत की जवानी रूखी।
तुम दोनों ही हो एक समान,
तुमसे है जीवन जवान।
यह कहते सुनते पौ फटी,
मेरी रचना बन उठी।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश