एक यार मेरे जैसा भी
दोस्ती, दो मन और दिल से जुड़ा रिश्ता होती है। जिसको यह प्राप्त हो जाऐ, उसकी जिंदगी तो संवरी ही जैसे। एक ऐसा रिश्ता जो अन्य सभी तालुको की भीड़ से अलग हदय की जमीं से जुड़ा होता है। जिसे हम खुद लोगो की भीड़ से अपने अनुसार चुनते है। जिसमें अपनी बात रखने के लिए किसी भी औपचारिकता को निभाने की जरुरत नही होती है, बस दिल की बात दिल तक उसकी भाषा में पहुँच जाती है। सच्ची दोस्ती को निभाने में कभी दिखावे की जरूरत नही होती है, सामान्य व्यवहार से ही यह जीवन भर चल जाती है। एक सच्चा मित्र हमारा परम हितैषी होती है, जिसे हम बिना किसी फाँरमल्टी के एक दूसरे पर अटूट विश्वास की बुनियाद पर आधारित सदाबहार रिश्ता, जिसमें हम पूर्ण रुप से समर्पित होते है, और खुद से भी कई ज्यादा विश्वास करते है।
दोस्ती, जहाँ हदय को सूकुन मिल जाता है की, हम कभी भी गलत राह पर नही भटक सकते, कोई तो है जो, भटकने से पूर्व ही हमारा मार्गदर्शन करेंगा। जिसके होते हुऐ हम खुद का चाह कर भी कभी अहित नही कर सकते। क्योकी इस रिश्ते में हमारे से पहले, हमारे साथी का, हम पर, हम से कई ज्यादा हक होता है। इसी हक के साथ वह हमारे जीवन कि प्रत्येक प्रतिक्रिया में मय्यसर होता है। वह दोस्त बिना हमारी इजाजत के, जो हमारे लिए हितकारी है, उस कार्य को स्वत: ही अंजाम दे देता है। जिस रिश्ते में खुद से पहले अपने साथी कि फिक्र को प्राथमिकता दी जाती है, गंर उस रिश्ते में कोई अपने समान दोस्त मिल जाऐ, तो इस रिश्ते की बुलंदी सातवे आसमां को छूती है। जब एक विचार और एक सोच मिलती है, तब रिश्तो को निभाना काफी आसान हो जाता है। एक दूसरे के मन की बात को सरलता से साझा किया जा सकता है।
वैसे गंर देखा जाऐ तो, दोस्ती किसी भी समानता की दहलीज पर नही होती। ये रिश्ता ही ऐसा है, जो कभी भी, कही भी, किसी के भी साथ जुड़ जाता है। बिना किसी जान पहचान व पहुँच के कोई अनजाना सा व्यक्ति हमारे दिल के इतना करीब आ जाता है, जिसके अभाव में जिंदगी सूनी हो जैसे। यह रिश्ता कभी किसी पहचान का मोहताज नही। दोस्ती दो अनजान व्यक्तियो के बीच एक तरह के तालुक को जोड़ने का सेतु है। जिस पर व्यक्ति चलकर अपने रिश्ते को एक सूरत देता है। दोस्ती में दो अपरिचित व्यक्ति भी एक रिश्ते की ड़ोर में बंध से जाते है, और इस रिश्ते का तार, बाकी के रिश्तो के तार से भी ज्यादा मजबूत होता है। क्योकी दोस्ती का चयन हदय की जमीं पर हम स्वयं करते है, अन्य रिश्तो की भांती रिश्ता हमें परिवार से नही मिलता। बाकी रिश्तो को हम परिवार व समाज के दबाव में आकर निभाते है, लेकिन दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है, जो बिना किसी दबाव के दिल से कुदरतन निभाया जाता है। इस रिश्ते की डोर निस्वार्थ भाव से एक दूसरे की सहायतार्थ हेतू समर्पित होती है। जिससे मित्रता जब भी पुकारे, तो मित्र तन, मन और धन से न्यौछावर होता है। दोस्ती में सदैव समर्पण का भाव होता है, सहयोग की भावना होती है, केवल मित्र कहलाने के लिए मित्रता की जाऐ, यह तो लाजमी नही। एक मित्र सुख-दुख के सहयोगी के साथ-साथ मित्र के प्रति वफादार भी होता है। कभी चाहकर भी अपने सखा की हदय की भावना को ठेस नही पहुँचा सकता। मित्र का सुख-दुख उसका अपना सुख-दुख होता है। दोस्त की आवश्यकता पर उसका साथ देना ही परम मित्र कहलाता है। अपने सखा की परेशानी ही, एक सच्चे दोस्त की ”आँख का तिनका” होती है। जिसे शीघ्र अति शीघ्र दूर कर, अपने मित्र को निजात दिलाता है।
जहाँ मित्रता का स्वर्ण सूरज इस भाँती सांतवे आसमान पर चमकता है, वही पाश्चत्य रुपी बादलो की ओट इसके प्रकाश को दैदिप्यमान होने से टोकती है। आज के परिवेश में रिश्तो का शुध्द रुप कही भी नही रहा है, दिखावे व स्वार्थ के आडंबर में वह कही औझल सा हो गया है। आज रिश्ता केवल निभाने भर मात्र के लिए जोड़ा जाता है, उसमें जीने कि अभिलाषा किसी को भी नही होती है। जहाँ रिश्तो का आज यह स्वरुप देखने को मिलता है, वही मित्रता का शुध्द रुप का प्रतिबिंब आज भी व्याप्त सा लगता है। दोस्ती कि रश्मियाँ आज भी कही ना कही इन ओट को चीरते हुऐ, अपने उजास फैलाती है। इन्ही किरत्यां की भांती आज भी मित्रता अपना प्रभाव दिखाती है। चाहे शुध्द रुप का प्रतिबिंब ही क्यो ना हो, लेकिन आज के परिवेश मे भी दोस्ती अपना असर दिखाती है।
जब-जब भी मित्रता ने सच्चे हदय से पुकारा है, दोस्ती ने अपना स्वरूप बनाया है। और इसी स्वरूप ने दोस्ती कि दूनिया में अपनी दस्तक दी है। इसी दस्तक के साथ मित्र के सूने मन में उमंग की एक तरंग दौड़ जाती है। इसी उमंग की आशा के साथ एक मित्र की दोस्ती के सुरज की किरणे अपना प्रभाव उसके प्रत्यक्ष जीवन पर डाल देती है।
जब मित्रता एक दोस्त के सूने मन के रिक्त स्थान को भरती है, तो उस दोस्त के मन में यारी कि अज़मत काफी हद तक बढ़ जाती है। वह मित्रता को हदयतल से बेखूबी निभाता है। जब एक मित्र अपने मित्र की मित्रता के प्रति पूर्ण से समर्पित रहता है, तो मित्रता भी मित्र को सानी देती है। मित्रता के आग़ोश में रहते रहते, कब दो जिस्म एक जान बन जाते है, इसकी इंतला नही होती है। एक ऐसा अटूट सा तार जुड़ता है, दो दोस्तो के दरमियां, जो तोड़े से ना टूटे। विश्वास और अपनत्व की नींव पर कब दोस्ती कि इमारत, गगनचुंबी हो जाती है, की देखने जाऐ तो सर की पगड़ी नीचे आ गिरे, यकीन नही होता है। ऐसे अनेको प्रत्यक्ष उदाहरण भारतीय इतिहास में देखने को आते है, जिसमें मित्रता का परवाना सर चढ़कर बोलता है। कृष्ण-सुदामा, अकबर-बीरबल और कर्ण-दूर्योधन, और भी ऐसे कई-कई उदाहरण इतिहास में भरे पड़े मिलेंगे, जिसने अपनी मित्रता निभाने में कोई भी कसर बाकी ना रखी। आज के परिवेश में मित्रता का प्रभाव भले ही बदल गया है, लेकिन भाव वही है।
एक परम मित्र दिल से अपने सखा को अपनत्व का भाव देता है। उसके साथ हर परिस्थिति में कदम से कदम मिलाकर चलता है। जरूरत पड़ने पर प्यार से डाँट लगाता है तो, अपने यार की तरक्की पर उसको हदय से भी लगाता है। एक सच्चा मित्र अपने दोस्त का मार्गदर्शक है, तो उसका पथनिरक्षक भी। दोस्त की गलती पर उससे नाराज होता है, तो दोस्त के अभाव में माफ भी करता है। एक दूसरे की फिक्र व साथ से यह रिश्ता जीवन भर दिल में राज करता है।
ऐसी ही मित्रता से परिपूर्ण एक सखा ने मेरी दोस्ती कि दूनिया में दस्तख दी। जिसे मे मेरे ही समान सोच का व्यक्ति मानता हूँ। गंर देखा जाऐ तो किसी भी व्यक्ति की सोच कभी भी एक नही हो सकती, उनमें अधिकतर भिन्नता जरुर होगी। पर हाँ, हम दोनो की सोच किसी एक बिंदू पर आकर एक हो जाती है।
जैस मेरा दोस्त, वैसा ही मैं।
मेरे प्रिय व घनिष्ठ मित्र देव वैष्णव को समर्पित, जिसने दोस्ती कि उन्ही किरणो से प्रकाश फैलाया है।
आपका अपना
लक्की सिंह चौहान
ठि.:- बनेड़ा(राजपुर)