एक मौत-और इतना शोर!
सुशांत-चिर-शान्त,प्रिय एवं परिजन आक्रान्त,
जन-मानस दिग्भ्रमित, और मिडिया अशांत।
हे सुशांत तुम क्यों मर गये,
मिडिया वाले तड़प रहे,
जो तुम ना मरे होते,
तो यह और क्या दिखा रहे होते,
हिंदू-मुसलमान,
भारत- पाकिस्तान,
बस इसी पर,
मचता रहता है घमासान।
अरे सुशांत तुमने कितनों से अफेयर किया,
किस से शुरू हुआ और कहां तक पहुंच गया,
आज कल तो रिया के चर्चे हैं,
किन्तु वह भी तो हैं, जिन्हें छोड़े बर्षो हुए,
वह भी अपने जज्बात उजागर करती हैं,
तुम ऐसे तो न थे, यह कहती हैं।
यार क्या जवानी पाई,
एक नहीं तीन-तीन जीवन में आई,
और किसी से भी ना पट्टी,
होती रही मुलाकात और कट्टी,
तो रिया पर ही इतनी तोहमत क्यों,
किसी और से भी तो, कर सकते थे प्यार को यों।
मां-बाप पर क्या गुजरेगी,
कभी सोचा भी था,
बहनों को कितना दुःख होगा,
कभी बिचारा भी था,
अपने इष्ट मित्रों की कभी परवाह भी की,
या फिर सिर्फ आसीक बन कर आसीकी ही की।
हां यह विचारणीय है तुम्हारी मृत्यु का दोषी कौन है,
इस मुद्दे पर नहीं कोई मौन है,
तुम्हारे ईर्द-गिर्द रहते थे जो,
उन्हीं पर हैं निगाहें, और मिडिया भी बेचैन है,
इसी गुत्थी को सुलझाने में तकरार भी है,
एक ओर महाराष्ट्र है तो दूसरी ओर बिहार भी है,
और अब तो लगे हाथ केन्द्र की सरकार भी है,
देखो-देखो वह इसे सुलझाने को लेकर तैयार भी है।
अब जब से सी -बी -आई, आयी,
हर रोज नए खुलासे लाई,
यह बात भी हमें मिडिया ने ही तो बताई,
रिया और उसके परिवार की हो रही जग हंसाई,
बेटी की की कमाई पर पल रहा था भाई।
क्या नसीब पाया है तुमने बच्चे,
मर कर हर रोज ही हो रहे हैं तुम्हारे चर्चे,
जीते जी तो कभी इतनी ख्याति नहीं पाई,
जितनी मर कर हो रही है सुनवाई,
अरे जरा उनकी भी शहादत बयां हो पाती,
जिनकी मर कर भी किसी को याद नही आई,
और मरे भी तो ऐसे अपनों के ही हाथों,
एक की चूक ने,छह जाने गंवाई,
तब देश में खुशी का माहौल था,
वायु सेना के पराक्रम का शोर था,
उसी पराक्रम के दौर में तो इन्होंने जान थी गंवाई,
वायु सेना ने भी इस पर ना कभी थी उंगली उठाई,
उसी शोर में इन्हे चुपचाप दे दी गई विदाई,
कहीं से भी एक आवाज नहीं आई,
आखिर यह कैसे हुआ भाई।
अभी कितना समय बिता है, लद्दाख की-गलवान घाटी में,
जब बीस सैनिकों को अपनी शहादत देनी पड़ गई,
निहत्थे थे जो वह अपनी सीमाओं पर खड़े थे,
दूसरी तरफ से आतताई, नुकिले डंडों को लिए थे,
अपनी सीमाओं की रक्षा को निहत्थे ही भीड गये,
जब तक जान में जान थी, लड़ते ही रहे,
और जब घायल हो गए पुरी तरह,
तो निढाल होकर वहीं पर गिर गये,
उनकी शहादत पर भी तो कुछ दिन बात कर लेते,
सरकार से भी दो-चार सवाल कर लेते,
किन्तु यह इनसे ना हो सकेगा,
सरकार से सवाल,यह कौन पुछ सकेगा,
जहां रोज झूठ परोसने की बीमारी लगी हो,
सरकार की उपलब्धियों पर प्रतिस्पर्धा ठनी हो,
जहां पर एक छोटी सी छोटी अदा पर फिदा हों,
जहां पर प्रसस्तिगान करने में जुटे हों,
वहां पर जन-सरोकारों की ओर कौन देखें।
ना आर्थिक मंदी पर कभी चिन्ता जताई जाए,
ना जहां पर बिमारी से बचाने को लेकर राय ली जाए,
ना जहां पर बेरोजगारी पर बात की जाए,
ना जहां पर गरीबी को मुद्दा बनाया जाए,
ना जहां पर देश की धरोहरों को बेचने पर पछताया जाए,
हां जहां पर कुछ नामचीन हस्तियों को लाभ पहुंचाया जाए,
वहां के मिडिया से क्या उम्मीद की जाए,
तो ऐसे में हर सुबह के समाचार में सुशांत ही दिखाया जाए,
या फिर कभी हिन्दू-मुसलमान,
तो कभी भारत-पाकिस्तान,
पर ही चर्चाएं होंगी,
या फिर विपक्ष की विफलताओं पर चर्चाएं होंगी।