एक चतुष्पदी यूँ ही
प्रेम जिसको भी होता है अंधा बना देता है।
इश्क की क्या कहूँ यह भी बिन बात सजा देता है।
मुहब्बत भी दुनिया को जी भर सताती है ।
दिल से न सही दिमाग से विकलांग बनाती है।
कलम घिसाई
प्रेम जिसको भी होता है अंधा बना देता है।
इश्क की क्या कहूँ यह भी बिन बात सजा देता है।
मुहब्बत भी दुनिया को जी भर सताती है ।
दिल से न सही दिमाग से विकलांग बनाती है।
कलम घिसाई