एक मुक्तक चंबल पर
1222 1222 1222 1222 शिल्प पर
********************************
हमारी माँ भी चंबल थी हमारी थी यही नानी।
इसी के दम पे हम सब थे ,हमारी थी महारानी।
जिसे हम मात कहते थे ,वही नदिया बनी दुश्मन।
किया सर सब्ज़ जिसने था ,उसी ने लिख दी वीरानी।
कलम घिसाई