एक मासूम कली हूं मैं …( एक मासूम बच्ची की आह )
क्या मैं औरत हूँ ?
माँ- बाबा तो कहते हैं ,
मैं एक छोटी बच्ची हूँ।
मैं तो अपने बाबा के आँगन की ,
सबसे नाज़ुक कली हूँ।
जो है अभी अधखिली ,अधपकी ,
एकदम मासूम ,अबोध बालिका।
जिसने अपनी नन्ही जुबां से ,
अभी- अभी बोलना सीखा है।
शब्दों को तोलना , भावनाओं /मंशाओं को,
समझना मुझे अभी नहीं आता।
मेरी नन्ही आँखों ने अभी- अभी तो दुनिया देखी है,
दुनिया को समझना मुझे नहीं आता।
मुझे तो बाबा ने हाथ पकड़ कर चलना सिखाया ,
अभी भी सीखा रहे हैं।
मेरे नन्हे से दिल ने अभी -अभी- बाबा का स्नेह, माता की ममता ,
और भाई- बहन के प्यार को समझना सीखा है।
प्यार का कोई और रूप भी है ,
मैं जानती तक नहीं।
मेरे खेल-खिलोने, गुड्डे- गुड़ियाँ यही
मेरा सारा संसार है।
इससे अधिक तो मैं कुछ भी जानती नहीं।
मेरे सपने ,मेरे अरमान अभी ठीक तरह से पके भी नहीं,
यह सच है ,माँ-बाबा ठीक करते हैं,।
मैं औरत नहीं,
मैं तो अभी औरत बनी ही नहीं,
मैं क्या जानू औरत होने का मतलब !
तुम मेरे साथ क्या करने वाले हो अंकल !
या क्या करोगे ?,
तुम मुझ जैसी अबोध /मासूम बालिका को ,
क्या समझ रहे हो ?
मैं तुम्हारी बेटी की उम्र की हूँ
मुझे छोड़ दो , मुझे बख्श दो अंकल !
तुम जो समझ बैठे हो मुझे ,
मैं वह नही हूं ।
मैं एक अबोध, मासूम सी बच्ची हूँ.
मैं औरत नहीं हूँ ।