एक महानगर
पेड़ों के झुण्ड, खम्बों की कतारें
सीमेंटेड सड़क,बेशुमार कारें
ठिठुरते बदन, थिरकते होंठ
जोर का ठहाका,भूख की दौड़ I
झूमते मदहोश, अधनंगे बदन
सीने से चिपकाए, खोखले स्तन
स्टार कल्चर, ज़िंदगी को आंके
कूड़े के ढेर, चंद निराश आँखें I
गगनचुम्भी इमारतें, रंगीन मुलाकातें
झोपड़ पट्टी की खुली खुली रांतें
आकाश -धरती के मिलन में बाधक
जीव और जंतु के मिलेगें ग्राहक I
क्लब, सिनेमा, काफी हाउस
सब को रिझाये मिकी माउस
त्रस्त व्यस्त जनता, मौत का डेरा
बेकारी, हड़ताल, दंगों का घेरा I
राजनीतिक दांव पेच, धोखा मक्कारी
वादों में उलझी जनता बेचारी
उग्र अलगाव, आतंकवाद
अनगिनित घटनाएं ,रखे कौन याद ?
आभासी दुनिया, मोबाइल के झोल
भेड़िये के शरीर पर मेमने का खोल
सच्चाई से अधिक झूठों के तराने
राज करें जनता पर छोटे बड़े घराने I
यह एक महानगर है, यहाँ शाइस्ता* कोई नहीं
इंसान सभी, इंसानियत सी अनुकूलता कोई नहीं
फिर भी यह एक महानगर है बहुत बड़ा शहर
आती है दुनिया देखने, चारों ओर से चारों पहर।I
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सर्वाधिकार सुरक्षित/त्रिभवन कौल
*शाइस्ता = विनर्म , विनीत , सभ्य , सुशील