एक मर्तबा…
जब भी मिलते हैं साथी पुराने
हाल पूछ लेते हैं….
कैसे हैं हम, और शायरी हमारी
ये सवाल पूछ लेते हैं….
उदासी पर लेकर घूँघट हम
तबस्सुम का अदा से….
उन्हीं से उनका फिर ये
सवाल पूछ लेते हैं….
आ तो जाए एक मर्तबा
ख़ुलूस -ए -ज़िगर को करार
होता है कैसे फिर ये
कमाल पूछ लेते हैं….
किस्मत से लड़ते-लड़ते
आए हैं इस मोड़ पर
क्या रह गया है बाकी फिर ये
मलाल पूछ लेते हैं…
– ✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता ‘
©®