एक मरी हुई बेटी
एक मरी हुई बेटी से तलाक़शुदा ज्यादा अच्छी है
एक रोती हुई विवाहिता से अकेली बैठी ज्यादा अच्छी है
कदर नही जिसके मन सम्मान की जहां
ऐसी जगह से वो सुनसान ज्यादा अच्छी है
छोड़ आई अपने संसार को पिया की खातिर
लाड़ प्यार दुलार भूल के हो गई किसी की
अपना बैठी उसके अनजाने संसार को
अपना समझ
फिर भी न पा सकी कोई प्यार सम्मान जहां से
ऐसी अपनेपन से बेगानी बनी ज्यादा अच्छी है
रो रही भूख प्यास मारपीट से तड़प रही ऐसी साजन की चौखट से अनजानी गली ज्यादा अच्छी है
मायके से डोली उठे पिया के घर से अर्थी ऐसी दकियानूसी बातों से
बाबुल के घर लौटी ज्यादा अच्छी है
मिटा दी जाए जहां बेटी चंद रुपयों की खातिर
ऐसे साजन की सजनी होने से मां बाबा की गुड़िया बनी ज्यादा अच्छी है
एक मरी हुई बेटी से तलाक़शुदा ज्यादा अच्छी है
“कविता चौहान”