“एक बड़ा प्लॉट – एक बड़ी दुकान”
शहर से तकरीबन 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है “अश्वनी लाल” जी का छोटा सा-प्यारा सा गाँव नगरपुर। संसाधनों की उचित व्यवस्थाओं के अभाव से, यह गाँव उतना विकसित तो नहीं है; परन्तु यहाँ के लोगों ने खेतों में पसीना बहा-बहा कर, इस गाँव को खुशहाल बनाया हुआ है। अब आते हैं इस कहानी के मुख्य पात्र और नगरपुर गाँव के ईमानदार और मेहनती किसान – अश्वनी लाल जी की कहानी पर………
बात है सन 2020 के शुरुआती महीनों की…; अश्वनी लाल, सुबह जल्दी उठकर कहीं जाने की तैयारी में लगे हुए थे। यह देख उनकी पत्नी ने पूछा; आज आप इतनी सुबह-सुबह कहाँ जाने की तैयारी करने लगे?
वो पुष्पा…, ज़रा शहर जा रहा हूँ किसी काम से। बाकी की बातें आकर बताऊँगा, अभी फिलहाल निकलने दो, लेट हो गया हूँ।
“लेकिन नाश्ता तो करके जाइये……..पुष्पा ने धीमे स्वर में कहा!”
नहीं, पुष्पा … बस का समय हो गया है और वैसे भी जिस काम से जा रहा हूँ वो काम नाश्ते से भी ज्यादा जरूरी है; तुम अपना और बेटे अभिनय का ख्याल रखना, काम खत्म होते ही जल्दी लौट आऊँगा……।
इतना कह कर अश्वनी लाल, बस पकड़कर शहर की ओर रवाना हो गए….
शहर पहुँच कर अश्वनी लाल, सबसे पहले अपने दोस्त सुरिंदर के घर जा पहुंचे। अश्वनी लाल को अचानक देख, सुरिंदर भी हैरान हो गया।
अरे अश्वनी तू! वो भी इतनी सुबह-सुबह?
हाँ सुरिंदर, मेरे दोस्त, बस तेरी कुछ मदद की ज़रूरत पड़ी तो सीधा तेरे पास आ गया।
वो तो ठीक है लेकिन, पहले इत्मीनान से बैठ तो सही। इतना कह कर सुरिंदर ने अपनी धर्म पत्नी किरण को चाय-नाश्ता लगाने के लिए आवाज़ लगाई।
नहीं सुरिंदर, मुझे खाना-पीना कुछ नहीं है। बस कुछ ज़रूरी काम था, उसी की चर्चा करनी थी।
हाँ-हाँ, भई, “चर्चा भी होगी और समाधान भी होगा, लेकिन खाते-खाते और पीते-पीते… हा हा हा………”
तभी दोनों ने साथ में नाश्ता करना शुरू किया..।
अब बता अश्वनी, क्या बात है, जिसके लिए तू इतनी सुबह-सुबह यहाँ तक आ पहुँचा!
वो बात यह है सुरिंदर, कि तुझे तो पता ही है, गाँव में रहकर हमारा स्तर उतना ऊपर नहीं उठ पाया है और अभिनय भी अब बड़ा हो रहा है। तो मैं चाहता हूँ कि, कम से कम उसका दाखिला अब गाँव के बाहर किसी अच्छे स्कूल में करवाऊँ; ताकि वो भी तेरे जैसे समय रहते गाँव से बाहर कहीं पढ़ सके और शहर में अपना नाम कमाए। इसी चिंता के समाधान के लिए मैं आज तेरे पास आया हूँ।
ओह अब समझा! बोल कितने पैसों की ज़रूरत है? अभी देता हूँ…..।
अरे नहीं-नहीं दोस्त, तुम मुझे गलत समझ बैठे! दरअसल मैं पैसों के लिए नहीं, बल्कि पैसे तो मैं साथ लेकर आया हूँ। यह देखो इस झोले में हैं…; वो भी पूरे पाँच हज़ार रुपए।
तो फिर, मुझसे किस तरह की मदद चाहिए तुझे अश्वनी??
सुना है, अगले महीने यहाँ पास के मैदान पर बहुत बड़ा मेला होता है। बस मुझे उस मेले में एक प्लाट मिल जाए, तो थोक में खिलौने बगैरा खरीद कर, वहाँ दुकान सजाऊँगा। अब ज्यादा जानकारी तो है नहीं कि किससे मिलना कैसे मिलना, तो बस इस काम में मुझे तेरी मदद चाहिए।
यह सुन कर सुरिंदर ने भावुक भरे स्वर में अश्वनी से कहा….; क्यों नहीं मेरे दोस्त! अक्सर लोग पैसों के लिए ही अकस्मात, किसी को याद किया करते हैं। परंतु, तू सच में महान है मेरे दोस्त! चल तुझे मेला कमेटी के अध्यक्ष से मिलवा देता हूँ, मेरे अच्छे परिचित हैं।
दोनों दोस्त, मेला कमेटी के अध्यक्ष श्री पुष्पराज जी के घर जा पहुँचे और उनसे मेले में एक प्लाट लेने की बात करने लगे। श्री पुष्पराज जी ने, कमेटी के एक सदस्य को बुलाया और उन्हें प्लाट दिखाने के उनके साथ मैदान पर भेज दिया।
मैदान पर पहुंचते ही अश्वनी लाल की नज़र बड़े-बड़े प्लॉट्स पर पड़ी और मन ही मन वह बहुत खुश होने लगा। उसने कहा, सुरिंदर मैं इस तरफ अपनी दुकान सजाऊँगा, कैसी रहेगी????
इतना सुन मेला कमेटी के सदस्य ने कहा, “यह पाँच नहीं बल्कि पन्द्रह हज़ार वाले प्लाट हैं। आपके प्लाट वो सामने, मैदान के दूसरी ओर हैं। आप आज ही बुकिंग करवा दीजिए। हम आपका प्लाट बुक कर देते हैं।”
अश्वनी लाल ने बेहद धीमे स्वर में कहा…., जी…..ठीक है!
अश्वनी लाल का मासूस होता चेहरा सुरिंदर ने बखूबी पढ़ लिया और कमेटी सदस्य को वही पन्द्रह हज़ार वाला प्लाट बुक करने के लिए कहा।
लेकिन सुरिंदर, मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैं उस प्लाट को ले सकूँ। और अभी पाँच हज़ार तो मैंने खिलौनों के लिए रखे हैं। इससे ऊपर तो मैं एक रुपया ज्यादा नहीं सोच सकता!
अरे कोई बात नहीं अश्वनी! तू कोई पराया थोड़े ना है? यार है तू अपना! यह ले पूरे पन्द्रह हज़ार। बस तू अपनी इस बड़ी दुकान को सजा। और हाँ, खिलौने अब पाँच नहीं बल्कि दस हज़ार के खरीद…. क्योंकि; अब तो तेरे पास “एक बड़ा प्लाट और एक बड़ी दुकान है…….!”
मैं इतनी बड़ी रकम कैसे चुकाऊंगा दोस्त! पन्द्रह हज़ार रुपए! नहीं दोस्त, रहने देते हैं, तू मना कर दे। मुझे नहीं चाहिए कोई प्लाट। मुझे नहीं कमाने पैसे भी!
फिर वही बात! चल अच्छा, तू दुकान सजा और पैसे कमा। और यह मत सोचना कि तूने मुझसे पैसे माँगे हैं, यह मैं अपनी मर्ज़ी से तुझे दे रहा हूँ। वैसे भी मुझे पूरा भरोसा है कि, पाँच दिनों तक चलने वाले मेले में, मेरा दोस्त कई गुना पैसे कमाएगा। बस, कमा कर मुझे लौटा देना….अब तो खुश है??
बड़ी मेहरबानी मेरे दोस्त! काश तेरे जैसा दोस्त ईश्वर सब को दे!
चल अब घर चल अश्वनी, आज यहीं रह मेरे पास।
नहीं दोस्त, घर पर सभी इंतज़ार कर रहे होंगे और गाँव जाने वाली बस का समय भी लगा है तो आज जाने दो, अगले महीने यहीं तो रहा करूंगा,,, वो भी पूरे पाँच दिन….हा हा हा….!
इतना कह कर दोनों अपने-अपने घर चले गए….।
अगला भाग….
अश्वनी लाल, ने घर पहुँचते ही अपने बेटे और पत्नी को गले लगाया।
अरे अरे क्या हुआ, “कुछ बताओगे भी हमें!”
पुष्पा……. अब हम शहर के मेलों में भी खिलौनों की दुकान सजाया करेंगे! वो भी छोटी दुकान नहीं; “बड़े प्लाट – पर बड़ी दुकान…..!” और यह सब मेरे दोस्त- सुरिंदर की वजह से हुआ है।
अच्छा, तो सुरिंदर भाई साहब जी, ने आपका यह सारा काम करवाया!
हाँ पुष्पा, बस अब एक-दो दिनों के अंदर, मैं शहर जाकर ढ़ेर सारे खिलौने ले आऊँगा और अगले महीने हमारा मेला भी होगा और व्यापार भी….!
लेकिन, खिलौने लेने शहर क्यों जाना, जी? हर साल जो खिलौने हम गाँव के मेले में बेचा करते हैं, वहाँ से बहुत सारे खिलौने बचे तो हैं, उन्हीं खिलौनों को ले चलेंगे बेचने को????
हाँ! यह तो तुमने बिल्कुल ठीक कहा पुष्पा, लेकिन इस बार हमारी दुकान बहुत बड़ी होगी, और उस दुकान को भरने के लिए मुझे शहर से भी कुछ और बेहतरीन खिलौने लाने पड़ेंगे। इससे हमारी दुकान खिलौनों से ख़ूब भर जाएगी।
भला ऐसी कितनी की बड़ी दुकान होगी कि आपको और ज्यादा खिलौने लाने शहर जाना पड़ेगा और इतनी बड़ी दुकान खरीदने के लिए पैसे बगैरा आए कहाँ से आपके पास…..??
वो सब बाद में बताता हूँ पुष्पा, पहले खाना खिलाओ…।
सभी ने साथ में खाना खाया और अश्वनी लाल ने इत्मीनान से सारी बातें अपनी पुष्पा को बताई।
सारा घटनाक्रम सुनने के बाद, पुष्पा ने कहा, “पन्द्रह हज़ार और दस हज़ार – मतलब यह मेला, हमें पूरे पच्चीस हजार का पड़ेगा..????” क्या हम इतना मुनाफ़ा कमा पाएँगे जी???
बिलकुल पुष्पा! भरी हुई दुकान और शहर की भीड़ के हिसाब से, हम कहीं अधिक मुनाफा कमा पाएँगे। और खिलौने ही हमारे पास इतने होंगे कि हम बेच-बेच कर थक जाया करेंगे …हा हा हा…..! और वैसे भी शहर में एक मेला खत्म होता है तो दूसरा शुरू होता है। अगर खिलौने बच भी गए तो दूसरे मेले में चले जाएँगे और ढ़ेर सारा मुनाफ़ा कमाएँगे पुष्पा!
पता नहीं जी, मुझे क्यों डर सा लग रहा है! इतने पैसे लगाकर भी अगर मुनाफ़ा नहीं हुआ तो क्या करेंगे?? ख़ैर, आपने कुछ सोचा होगा तो ठीक ही होगा!
अब देखो तुम मुझे डराओ मत! बस यह समझो कि इस साल हमारी अच्छी-खासी बचत हो जाएगी। और सारे बचत के पैसे हम जमा करके रखेंगे, ताकि अभिनय की ग्यारह कक्षा का दाखिला, पास के किसी अच्छे स्कूल में करवा सकें!
एक-दो दिन गुज़र जाने के बाद, अश्वनी लाल, शहर जाकर बहुत सारे खिलौने ले आया। यह देख पुष्पा ने कहा, “जी यह खिलौने पहले लाने की क्या ज़रूरत थी?” अगले महीने जब दुकान सजाने जाना था, तब एक जगह से खरीदने थे और दूसरी जगह सजा देने थे, इतना कष्ट सहने की क्या ज़रूरत थी???
पुष्पा रानी, सुझाव तो तुम बहुत अच्छे देती हो, पर सोचती नहीं हो, हा हा हा…..।
क्या मतलब??
मतलब यह, कि शहर का मेला है। व्यापारी चार-पाँच महीना पहले ही सामान जोड़ने में लग जाते हैं। यह तो शुक्र मनाओ, कि हमें भी सही समय पर खिलौने मिल गए; वरना एक-दो दिन और रुकता, तो खाली हाथ लौटता।
चलो अब खाना खा कर थोड़ा आराम कर लें, फिर खेतों की ओर भी जाना है। इस बार फसल भी अच्छी ही होगी, मुझे पूरा भरोसा है….!
शाम को अश्वनी लाल और उसका बेटा, खेतों की ओर निकल पड़े।
पिता जी, “इस बार हमारी फसल काफी अच्छी होने वाली है!”
हाँ बेटे, कुछ पैसे फसल बेच कर और कुछ मेले से कमा कर; तुझे अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवाऊंगा….!
जी पिता जी, मैं भी मेले में खिलौने बेचने में आपकी मदद करूँगा।
हाँ-हाँ, पर तेरे तो पक्के इम्तिहान चले होंगे ना?? तू अपने इम्तिहानों की तरफ ध्यान लगा। अच्छे अंक लाएगा तभी दाखिला मिलेगा। समझा????
जी पिता जी, उसकी चिंता आप ना करें, मैं खूब मेहनत कर रहा हूँ!
समय बीतता गया और अश्वनी लाल को अपने सपने सच होते दिख ही रहे थे कि एक रात खाना खाने के बाद, अश्वनी लाल, ने जैसे ही टीवी ऑन करके देखा, मानो उसके सारे सपने अचानक से धराशायी हो गए….!
क्या हुआ पिता जी? आप इतने परेशान क्यों लग रहे हैं!
कुछ नहीं बेटा, तुम जाकर पढ़ाई करो….।
इतनी देर में, पुष्पा कमरे में आती है और पति के चेहरे पर परेशानी देख कर घबरा जाती है..!
क्या हुआ जी?? आप परेशान लग रहे हो???
हाँ, पुष्पा! अभी टीवी पर खबर ही ऐसी आई कि ……..
लेकिन ऐसा क्या सुन लिया आपने, जिससे आप इतने चिंतित हो गए???
वो पुष्पा…, जो कोरोना नाम की महामारी विदेश में फैली थी, उसने हमारे भारत देश में भी दस्तक देकर लोगों को नुकसान पहुँचाना शुरू कर दिया है। और उसी के चलते फैसले लिए जा रहे हैं कि कहीं भी कोई भीड़ इकट्ठी नहीं होगी। मतलब मेले बगैरा सब बन्द होंगे पुष्पा….!
हे भगवान! यह कैसी महामारी होगी, जिसने हमारे भारत देश को घेर लिया है??? अब हम क्या करेंगे??? इतने पैसे उधार लिए हैं, उन्हें कैसे चुकाएँगे!!
उसी बात को सोच-सोच कर तो पुष्पा मेरी परेशानी भी बढ़ती जा रही है। मना करता रहा सुरिंदर को, कि मत दे पैसे, मुझे नहीं चाहिए कोई भी बड़ा प्लाट। लेकिन उसने मेरी एक ना सुनी। अब क्या करूँगा, कुछ समझ नहीं आ रहा!
हमने भी लालच में आकर, शहर का रुख करना शुरू कर दिया। भगवान की कृपा से, यहीं गाँव के मेले में दुकान लगा लिया करते थे। पता नहीं यह शहर के मेले में दुकान सजाने की क्या सूझ पड़ी…!
अश्वनी लाल को थोड़ा शांत करती हुई पुष्पा बोली, “देखो, अब आप ज्यादा मत सोचो! जल्दी ही हालात सामान्य हो जाएंगे, फिर हम शहर जाकर सजा लेंगे दुकान…! अगले महीने ना सही, उससे अगले महीने सही, मेले तो होंगे ही ना……!!”
हाँ, यह तुम ठीक कह रही हो। तब तक मैं सुरिंदर को फोन करके बता देता हूँ, कि पैसे तुझे दो महीने बाद ही लौटा सकूँगा…
अश्वनी लाल ने तुरंत सुरिंदर को फोन लगाया:
हैलो सुरिंदर..! कैसा है दोस्त??
बस ठीक हूँ, अश्वनी, तू बता…???
मैं भी ठीक हूँ, मैंने टीवी में देखा कि कोरोना नाम की महामारी कुछ ज्यादा ही फैल रही है। इस करके कुछ समय के लिए भीड़ इकट्ठा नहीं होगी। तो मैं, तेरे पैसे अब दो महीने बाद ही दूँगा, जब मेले शुरू होंगे…..।
काश मेरे दोस्त! तेरी बात सच हो। और दो महीने बाद मेले शुरू हो जाएँ!! परन्तु, मौजूदा हालातों पर अगर गौर करें तो यह स्थिति अब कब सामान्य होगी, यह सिर्फ ईश्वर ही जानता है…..!
क्यों दोस्त?? कोई भयानक स्थिति आ गई है क्या???
हाँ अश्वनी, भयानक ही समझ! बस ईश्वर जल्द ही सब ठीक कर दें। नहीं तो यह महामारी हमें क्या-क्या रंग दिखाएगी, कुछ नहीं कह सकते। और तू भी मेले बगैरा की छोड़, और अपना और अपने परिवार का ध्यान रख। टीवी देखते रहना, और जैसा-जैसा सरकार बताए, ठीक वैसे ही नियमों का पालन करते रहना….ख्याल रखना अपना….।
इतना कह कर सुरिंदर ने फोन रख दिया और अश्वनी लाल अब और चिंता में पड़ गया।
बहुत दुःखी हृदय से अश्वनी लाल कहने लगा, “क्या सोचा था पुष्पा और क्या हो गया…!”
सोचा था, अभिनय की ग्यारह कक्षा का दाखिला, किसी अच्छे स्कूल में करवाऊँगा… लेकिन अब तो जो पैसे थे, वो भी खत्म हो गए…! क्या करेंगे पुष्पा हम????
पुष्पा ने अश्वनी लाल को हौंसला देते हुए कहा, आप इस तरह हिम्मत ना छोड़ें, अनाज बेच कर थोड़े बहुत पैसे तो आ ही जाएँगे ना???
लेकिन कितने पुष्पा? कितने??? तीस हजार के अलावा खुद के लिए भी पैसे रखने हैं। हो पाएगा क्या अनाज बेचकर, इतना मुनाफ़ा?? लगता है तुम्हें???? लगता है तो बोलो, मैं अभी खुश होकर नाचने लग पड़ता हूँ….
देखो, सम्भालो आप खुद को। ऐसी कठोरता से बात करोगे तो दिमाग पर ओर बोझ पड़ेगा। सब्र रखिए, कोई ना कोई रास्ता ज़रूर सूझेगा, लेकिन धैर्य तो रखिए…।
यह सब बातें अभिनय भी सुन रहा था, उसने भी अपने पिता को समझाया…. पिता जी, मैं अभी जिस स्कूल में पढ़ता हूँ, वो भी अच्छा स्कूल है, आप इस तरह परेशान ना होइए। रात बहुत हो गई है, चलिए सो जाइए। बाकी सुबह उठकर कोई विचार करते हैं…।
इतना कहकर, सभी सोने की तैयारी में लग पड़े। परन्तु, अश्वनी लाल को कहां नींद थी; वो पलंग पर लेटे-लेते भी अभिनय के नए स्कूल और उधारी के पैसों के चक्र में उलझा हुआ था….। उस रात अश्वनी लाल सोया ही नहीं था। सुबह होते ही अश्वनी लाल अपने खेतों में पहुँच गया। इतनी सुबह अश्वनी लाल को खेतों में जाता देख, पुष्पा भी खेतों में जा पहुँची….।
आप अभी तक उसी सोच में पड़े हो? आखिर जो होगा वो देख लेंगे। सुरिंदर भाई साहब कौन सा अभी ही आपसे पैसों की मांग कर रहे हैं????? जब सब कुछ सामान्य हो जाएगा तब क्या पता मेले भी लगें और हम सामान बेच कर पैसे लौटा देंगे। और रही बात, अभिनय के स्कूल की, तो वो यहाँ भी पढ़ तो रहा ही है। यह स्कूल भी अच्छा है, उसकी चिंता आप मत करो…।
तुम्हारा कहना बिल्कुल स्तय है पुष्पा, लेकिन घुटन इस बात की हो रही, कि जिंदगी में पहली बार किसी का उधार सर पर ले बैठा और वही समय पर नहीं चुका पाउँगा। क्यों इंसान, कई बार इतना बेबस हो जाता है, कि वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता??????
ऐसा नहीं है जी, इंसान सब कुछ कर सकता है…. अगर अपने हौंसले बुलंद रखे तो….! और आपका हौंसला – मैं और आपका बेटा हैं..। चलिए घर, अपने लिए न सही, पर अपने बेटे के लिए तो चलिए….!
दूसरी तरफ, हालात सामान्य होने तक सम्पूर्ण भारत में लॉक डाउन लग चुका था। लोगों की सुरक्षा के लिए, शासन-प्रशासन दोनों ने मिलकर कई तरह के कदम उठाना शुरू कर दिए थे। तरह-तरह के जागरूकता भरे सन्देश आम लोगों तक पहुँचाए जा रहे थे, जिसमें मास्क पहना, दो गज की दूरी और बहुत ज़रूरी होने पर ही घर से बाहर निकलना आदि शामिल थे। हालाँकि आवश्यक कार्यों के लिए कोई बाधा ना आए, इसके लिए भी उचित प्रावधान किए जा रहे थे।
अब अश्वनी लाल सारा दिन टीवी या फोन के सहारे गुजारा करता।
पुष्पा, मुझे इस अकेलेपन में घुटन हो रही है। सब कुछ बन्द है, ना कोई किसी के घर जा रहा – ना आ रहा। मैं यह घुटन नहीं सह पा रहा। ना जाने, कब तक हालात सामान्य होंगे???? क्या होगा????
आप ठीक कह रहे हैं, घुटन तो हो रही है; लेकिन इसमें ही तो हम सबकी भलाई है ना?? कुछ समय कष्ट सहेंगे, तभी तो हमारे देश को इस बीमारी से मुक्ति मिलेगी ना???? परन्तु पहले आप अपना हाल देखो, सोच-सोच कर चेहरा भी फीका पड़ गया है।
खैर! कुछ दिन बाद, जब फसलों की कटाई का कार्य शुरू होगा, तब व्यस्तता के चलते आप ज्यादा नहीं सोच पाएँगे….और मन भी हलका होगा। और हाँ, आप यह फोन और टीवी देखना थोड़ा कम कीजिए। दिनभर पता नहीं क्या-क्या देखते रहते हो??
एक तरफ जहाँ अश्वनी लाल ने खुद को कई तरह के विचारों से घेरा हुआ था, तो वहीं दूसरी तरफ, कुछ समय बाद, देश के, कुछ स्थानों पर, कोरोना से हालात सामान्य होते दिख रहे थे। परन्तु, देश के अभी भी कुछ हिस्से इसकी चपेट से घिरे हुए थे। जिस कारण, लॉक डाउन जैसी परिस्थिति अभी तक बरकरार थी। हालाँकि, 25 मार्च 2020 से शुरू हुए इस लम्बे लॉक डाउन को, जून 2020 के पहले हफ्ते से कुछ जगहों पर सरकार द्वारा छूट देने के चलते, लोगों का जीवन मानो फिर से पटरी पर लौट आया था, परन्तु भयावह स्थिति अभी तक बनी हुई थी!
लेकिन अश्वनी लाल का जीवन अभी तक बापिस अपनी पटरी पर नहीं लौटा था!
पुष्पा……, मैं सोच रहा हूँ, शहर जाकर, उस खिलौने वाले से मिलकर आता हूँ। क्या पता वो खिलौने बापिस ले ले!! अगर बापिस कर लिए तो मेरे सर से आधा बोझ कम हो जाएगा। फिर कम से कम सुरिंदर के थोड़े बहुत पैसे तो लौटा ही सकूँगा!!!
यह सुनकर पुष्पा बोली, “अभी देखो, सरकार ने थोड़ी बहुत रियायत दी है, तो इसका मतलब यह नहीं कि आप शहर की तरफ निकल पड़ो। हमारा भी तो कुछ दायित्व बनता है या नहीं???”
तो मैं क्या, शहर बिना किसी काम के जा रहा हूँ??? तुम्हें नहीं लगता कि मेरा जाना कितना जरूरी है शहर??
जी, वो तो मैं समझ रही हूँ लेकिन इस विषय के लिए पहले आप फोन पर सुरिंदर भाई साहब से राय तो ले सकते हो ना?? उनको तो ज्यादा पता होगा!
अब तो सुरिंदर से बात करना भी अजीब लगता है। ना, जाने वो कौन सी घड़ी थी, जब प्लाट देखने गया था। ऊपर से अपनी हैसियत से बढ़कर, तीन गुना अधिक दाम वाला प्लाट ले लिया। “एक बड़ा प्लाट, एक बड़ी दुकान” बस इसी के चक्कर में आज यह हालत हो गई मेरी!
आप दिमाग पर क्यों इतना ज़ोर डालते हो जी?? बार-बार बस एक ही बात, एक ही रट!
पुष्पा तुम जाओ यहाँ से बस, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो!
आप क्यों ज़रा-ज़रा सी बात पर इतने चिड़चिड़े हो जाते हो। ना जाने क्या हो गया है आपको भी!
बस तुम जाओ पुष्पा…!
इतनी देर में अश्वनी लाल का पड़ोसी राजेश उनके घर आया….
नमस्कार अश्वनी लाल जी! भाई क्या बात है? आजकल दिखाई नहीं देते हो; और खेतों में भी कम ही आया करते हो?? सब ठीक तो है ना??
हाँ-हाँ राजेश भाई, सब ठीक है। ऐसा कुछ नहीं है।
पर तुम्हें देख कर लग नहीं रहा कि सब ठीक है। देखो, हम एक अच्छे पड़ोसी हैं और कई बरसों से एक-दूसरे के परिवारों को जानते हैं। मेरे परिवार वालों भी कई दिनों से तुम्हें देख रहे हैं। ना तुम ज्यादा बात करते हो, ना बाहर निकलते हो?? आखिर हुआ क्या है अश्वनी लाल?? अगर कोई परेशानी है तो तुम मुझे बताओ, शायद मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूँ??
बताने को तो वैसा कुछ है नहीं….., फिर भी अब तुम विशेष कर मेरे लिए यहाँ आए हो तो सुनो………….
चाय की चुस्कियां भरते हुए, अश्वनी लाल ने कुछ महीने पहले घटित हुआ सारा घटनाक्रम, अपने पड़ोसी राजेश को सुनाया……।
यह सुन राजेश ने कहा, “देखो अश्वनी लाल, माना तुम्हारे अरमानों को चोट पहुँची है; परन्तु इसमें कुछ भी काल्पनिक नहीं था! किसी ने नहीं सोचा था कि, अचानक से हमारे देश में ऐसी कोई मुसीबत आन पड़ेगी! और रही बात अभिनय के दाखिले की; तो तुम्हें ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए कि ऐसे माहौल में, अभिनय जैसा बुद्धिमान लड़का तुम्हारे साथ है। क्या तुम भूल गए; आज से दो-तीन महीने पहले जब लॉक डाउन लगा था, तब कैसे घर से दूर रह रहे लोग अपने घरों को; अपने गाँव को याद कर रहे थे???
जो है सब ठीक है, तुम व्यर्थ की चिंता मत करो। और हाँ, रही बात सुरिंदर भाई के पैसों की, तो जिस इंसान ने बिना मांगे तुम्हारे लिए पैसे निकाले, समझो वो इंसान महान है। और महान इंसान हर बात समझता है; इसीलिए महान कहलाता है……!
पुष्पा भी साथ में बैठी सारी बातें सुन रही थी और समझ भी रही थी….।
इतने में पुष्पा ने कहा, “भाई साहब जी, सच कहूँ तो इन्होंने सुरिंदर भाई जी से बात करनी भी बंद कर दी है।” कहते हैं, अब हिम्मत नहीं होती उससे बात करनी की और झूठी हंसी चेहरे पर लाकर मुझसे बात नहीं की जाती…।
यह तो तुमने गलत किया है अश्वनी भाई, जिस व्यक्ति ने तुम्हारा साथ निभाया, उसी से बात करना बंद कर दी???
हाँ, राजेश भाई, बस अब मैं ज्यादा बात नहीं करना चाहता। मुझे कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दो। इतना कह कर अश्वनी लाल वहाँ से उठ कर चला गया…..।
भाई साहब, “आप बुरा मत मानना!” आजकल इनका चिड़चिड़ापन बहुत बढ़ गया है। क्या करें कुछ समझ नहीं आता!
भाभी, बुरा मत मानना, लेकिन मुझे लगता है, इन्हें चिकित्सक परामर्श की बहुत जरूरत है। इन्हें किसी भी तरह करके पास की डिस्पेंसरी ले जाओ, इससे ज्यादा मैं क्या कहूँ! अगर मेरे साथ जाना यह ठीक समझेंगे तो मैं चल पडूँगा, लेकिन मेरे हिसाब से एक बार जाकर परामर्श लेना ज़रूरी है।
इतना कहकर, राजेश अपने घर चला गया….. और पुष्पा की चिंता बढ़ गई।
कुछ देर बाद, पुष्पा ने जैसे-तैसे अश्वनी लाल का मनोभाव देख कर उससे बातों ही बातों में सुबह राजेश भाई के साथ डिस्पेंसरी जाने की बात कही…।
अश्वनी लाल ने हालाँकि बिना सोचे, डिस्पेंसरी जाने के लिए हाँ कर दी और पुष्पा भी थोड़ी चिंता कम हुई।
सुबह अश्वनी लाल और उनका पड़ोसी राजेश, दोनों चिकित्सक परामर्श लेने डिस्पेंसरी जा पहुँचे। राजेश ने अकेले में, पहले ही डॉक्टर साहब से मिलकर अश्वनी लाल की सारी तकलीफ उन्हें बता दी थी।
राजेश ने भी डॉक्टर साहब के कहने पर, अश्वनी लाल को अकेले ही कमरे में भेजा।
डॉक्टर साहब ने अश्वनी लाल को बिठा कर सारी बातें दोबारा से सुनीं।
इस पर डॉक्टर ने अश्वनी लाल से पूछा, “तुम्हारी दिनचर्या कैसी है? मतलब क्या-क्या करते हो??”
डॉक्टर साहब, विशेष तो कुछ नहीं करता हूँ। बस वही उठना, खाना-पीना और फोन देखना। और हाँ, कभी दिल हो तो खेतों में काम कर आता हूँ, नहीं तो मेरा बेटा और मेरी पत्नी सब सम्भाल लेते हैं…।
अच्छा फोन पर ज्यादा क्या देखते हो, डॉक्टर साहब ने अश्वनी लाल से पूछा??
देखता तो कुछ नहीं पर जो बीमारी फैली थी बहुत, उसके बारे में जानकारी लेता रहता हूँ…, अभी तक।
ओह अच्छा! तो क्या-क्या सीखा तुमने इस बीमारी के बारे में??
यही डॉक्टर साहब, कि बार-बार हाथ धोना, मास्क पहनना और दो गज की दूरी बनाना।
ठीक है अच्छी बात है! पर क्या तुम मुझे एक बात सच-सच बताओगे?
जी, डॉक्टर साहब, ज़रूर।
क्या तुम इस बीमारी के डर के कारण ज्यादा तनाव में रहने लगे हो या कोई अन्य कारण हैं??
डॉक्टर साहब मैं समझा नहीं!!
देखो मैं जो पूछ रहा हूँ, बस उतना उत्तर दो।
वो…….आप ठीक कह रहे हैं डॉक्टर साहब। एक तो इस बीमारी के आने से मेरे सपने टूट गए। ऊपर से जब सब कुछ बन्द हो गया तो घर में बैठे डर सा लगना शुरू हो गया। फिर फोन पर रोज़ के हालातों की खबरें देख कर डर बढ़ता गया। चिड़चिड़ापन जो पहले थोड़ा था वो और बढ़ गया। घबराहट होने लगी। फिर सोचा, अगर किसी को बताऊँगा तो मुझे डरपोक समझ कर हँसेंगे, इसलिए अपने घरवालों तक को कुछ नहीं बताया…..!
यह तो अश्वनी जी, मैं पहले ही समझ गया था। लेकिन आपके मुँह से सुनना चाह रहा था।
खैर, पहली बात तो यह कि डरना किसी भी परिस्थिति का कोई समाधान नहीं है। सावधानियाँ ज़रूरी हैं लेकिन वहाँ, जहाँ पर ज़रूरत महसूस होने लगे। अगर, घर पर रहकर भी आप असुरक्षित महसूस करें तो यह आपकी गलतफहमी है। आपने सोच-सोच कर अपना मानसिक तनाव बढ़ा लिया है। शहर में मेरा दोस्त है, जो मानसिक रोगों का इलाज करता है। उसका पता मैं लिख देता हूँ। समय मिले तो वहाँ ज़रूर जा आना। फिलहाल कुछ दवाईयां लिख रहा हूँ, इन्हें ले लेना…..।
जी, “शुक्रिया डॉक्टर साहब!”
इतना कह कर, दोनों घर बापसी को चल दिए…।
राजेश तो सीधे अपने घर चला गया और अश्वनी लाल ने घर पहुँच कर पुष्पा से कहा, लो पुष्पा जा आया डिस्पेंसरी भी। बस हल्का सर दर्द था तो उसकी दवाई दे दी उन्होंने, बाकी कुछ नहीं है मुझे..!
पुष्पा, यह सुनकर खुश हो गई….!!
अगली सुबह, अश्वनी लाल और पुष्पा उस समय बहुत हैरान हुए जब अचानक उन्होंने अपने घर के दरवाजे पर सुरिंदर को खड़ा पाया…!
अश्वनी लाल यह सोच कर डर गया,कि कहीं यह पैसे मांगने तो नहीं आ गया होगा।
हल्की आवाज़ में अश्वनी लाल ने कहा, सुरिंदर तू ! इतनी सुबह!! सब ठीक तो है??
इतने में पीछे से एक और आवाज़ आई….,”हाँ सब ठीक है, बस थोड़ा ज़रूरी था तो आना पड़ा सुरिंदर जी को यहाँ…. ”
अश्वनी लाल ने आगे जाकर देखा, तो राजेश को भी सुरिंदर के पीछे खड़ा हुआ पाया…।
हाँ अश्वनी भाई, मैंने ही सुरिंदर को फोन करके यहाँ बुलाया है, शायद सुरिंदर की बातें तुम पर ज्यादा असर करें, हमारी तो तुम सुनते कहाँ हो??
यूँ अचानक से सुरिंदर भाई और राजेश भाई साहब को साथ देख कर पुष्पा भी हैरान थी!! वो कुछ समझ पाती उससे पहले ही सुरिंदर, अश्वनी पर चिल्ला पड़ा……; “तेरा फोन क्यों नहीं लगता आजकल? और पहले फोन करता था तो उठाता नहीं था??” और हाँ अब दिमाग पर बेफिजूल का बोझ मत लग पड़ना डालने, मैं पैसे मांगने नहीं, बल्कि तुझे साथ ले जाने आया हूँ समझा….!!
यह सुनकर पुष्पा ने पूछा, “शहर ले जाने मतलब…..”
क्यों भाभी, इसने बताया नहीं आपको कि इसने मानसिक तनाव पाल रखा है आजकल??? और उसी के इलाज के लिए मैं इसे शहर ले जाना आया हूँ….!
यह सुन पुष्पा की आँखें भी भर आईं और अश्वनी लाल की तरफ देख कर बोली, “तुमने तो कहा था कि सब ठीक है? तो फिर यह क्या बोल रहे हैं????”
भाभी जी, वैसे चिंता की तो कोई बात नहीं है। आप घबराइए नहीं। दवाई से यह पूरा ठीक हो जाएगा।
अश्वनी यार, बन्दा तू कमाल का है! अपनी सोच के साथ घूम-घूम कर तू कहाँ से कहाँ भटक गया!!
पहले मेला, फिर दाखिला और फिर बीमारी, भई वाह! खैर चल अब जल्दी…वरना अभी पैसे मांगने लग पडूँगा मैं अपने हा हा हा, और हाँ अब मेहरबानी करके पैसों के विषय में दोबारा कुछ मत सोचने बैठ जाना, दोस्त हूँ तेरा यार, एक दोस्त को दोस्त नहीं समझेगा तो कौन समझेगा….!
सुरिंदर की बातें सुन कर वहाँ खड़े सभी लोगों की आँखें भर आईं।
सुरिंदर ने अश्वनी लाल को शहर ले जाकर, उसका पूरा चेकअप करवाया और उसे मानसिक परेशानी से राहत दिलवाकर उसे भरपूर सहयोग दिया…!
कुछ समय बाद अश्वनी लाल की दिनचर्या में बहुत बदलाव देखने को मिला। बताए अनुसार, दवाई के साथ-साथ उसने कई तरफ की गतिविधियों में खुद को व्यस्त रखना शुरू किया। अब अश्वनी लाल खेतीबाड़ी में मन लगाकर काम करता और ज्यादा समय अपने करीबियों के साथ बिताया करता…। समय रहते और भरपूर सहयोग के कारण उसके अंदर एक नया ज़ज़्बा जाग उठा था और अब वह मानसिक तौर से भी मज़बूत बन चुका था…!
इसी तरह समय बीतता गया और साल शुरू हुआ 2021 का….
इस बार फिर अश्वनी लाल ने शहर जाकर मेले में दुकान लगाने की सोची! पुष्पा ने भी हमेशा की तरह सुरिंदर भाई से सलाह करने की बात कही…!
अश्वनी लाल ने भी तुरन्त सुरिंदर को फोन लगाया और अपना विचार उसके समक्ष रखा।
परन्तु इस बार सुरिंदर ने अश्वनी को प्लाट लेने और दुकान सजाने के लिए मना कर दिया।
अश्वनी लाल यह सोच कर कि कहीं पैसों के चक्कर में सुरिंदर उसे मना कर रहा है, थोड़ी देर के लिए वह खामोश हो गया…!
स्थिति को भांपते हुए सुरिंदर ने फिर उसे समझाया कि दोस्त, अभी तक हमारे देश को कोरोना से पूरी तरह छुटकारा नहीं मिला है और पता नहीं इस बार भी मेले सजेंगे या नहीं। बात पैसों की नहीं है, मैं खरीद दूँगा तेरे लिए प्लाट, तुझे आने की भी ज़रूरत नहीं है। परंतु अगर मेला नहीं सजा, तो तू फिर सोच-सोच कर कहीं पहले की तरह ना बन जाए, बस इसी बात का डर है…।
अश्वनी लाल ने भी सुरिंदर की बात को आसानी से समझा और “एक बड़ा प्लाट – एक बड़ी दुकान” का इरादा फिलहाल बदल दिया।
कुछ समय बाद हुआ भी वही, इस साल फिर से मेले नहीं सजे।
एक बार फिर कोरोना महामारी ने देश को विचलित कर दिया। और स्थिति को नियंत्रण करने के लिए सरकार द्वारा कड़े कदम उठाए जाने लगे।
उधर अश्वनी लाल, “इस बार भी डरा तो था लेकिन डरने के बजाए, वह इस बार सावधानियों को प्राथमिकता देते हुए, अपने परिवार वालों और अपने मित्रों को भी ज्यादा प्राथमिकता दे रहा था………..!!”
बहरहाल! हमारे देश में ऐसे ना जाने कितने अश्वनी लाल हैं; जिनके सपने, इस कोरोना महामारी के कारण तत्काल साकार नहीं हो सके। हालाँकि, कई अश्वनी लाल तो ऐसे भी होंगे, जिनके पास ना अपने खेत होंगे, ना कोई स्थाई कारोबार होंगे; और सिर्फ़ मेलों पर आश्रित रहने के चलते ना जाने वो किस हाल में होंगे!!!
अगर बात करें इस कहानी की:- तो इसमें, अश्वनी लाल के पास एक सुलझा हुआ- समझदार परिवार का साथ था,, सुरिंदर जैसे दोस्त था,, और राजेश जैसा पड़ोसी था।। और जिस किसी के भी साथ ऐसे लोग हों, वो निश्चय ही खुशनसीब होते हैं…!
आज के इस कोरोना दौर में, हम सबके अंदर एक पुष्पा होनी चाहिए, एक सुरिंदर होना चाहिए या एक राजेश होना चाहिए, ताकि हम अश्वनी लाल जैसे मनोग्रसित लोगों के अंदर जीने के बीज बो सकें और उनमें एक नई ऊर्जा का संचार कर सकें।
“कई बार, एक छोटी सी की गई कोशिश भी हमें सार्थक परिणाम की ओर ले जाती है। माना यह काल चुनौतियों से भरा हुआ है लेकिन मज़बूत हौंसलों के आगे चुनौतियाँ भी फ़ीकी पड़ जाती हैं…!”
“धन्यवाद”
लेखक: शिवालिक अवस्थी,
धर्मशाला, हि.प्र।