एक बेटी
पहले मै खुद के लिये ही विलन बन गयी
और एक डर ने बदला मुझे, मै नीड़र बन गयी
लोग परखते थे मुझे तू कैसी फिकर बन गयी
अब जा उसी ज़माने से पुछ,मै शान-ऐ-पिहर बन गयी !
वक़्त के साथ थोड़ा और बदलाव आयेगा
मै उड़ने को जो निकली हू,
कबलियत मेरी आसमां छू जायेगा
ऐ जमाना तु यूही अर्चने लगाते रहना
देखना ये बेटी ही अपनी बाबुल की पहचान बन जायेगा !
तु भारोसा ना करे हैं, मै कोई वहम हु क्या ?
तु हर बार आजमाये हैं , मै कोई भ्रम हु क्या ?
तूने अधिकार ही छीने थे, मुझसे
वरना मै किसी से कम हु क्या ?
अपने जनक की बेटी, तो अपने भाई की भाई हू
मै एक आगमन, और मै ही विदाई हू
अब हर कदम बाढऊँगी, कांधा मिलाऊंगी
की मानो य़ा ना मानो मै एक सच्चाई हू !