*एक बूढ़े का दर्द (कहानी)*
एक बूढ़े का दर्द (कहानी)
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” पिताजी ! आखिर नुकसान क्या है? घर में बैठे बिठाए ₹15000 की आमदनी आपकी हो जाएगी ।थोड़ा मन भी लगा रहेगा। घर पर पड़े – पड़े तो शरीर बिल्कुल ही बूढ़ा हो जाएगा ।”-जब पुत्र रमेश ने यह बात कही,तो रामलाल जी भीतर ही भीतर रो पड़े ।
नौकरी से रिटायर होने के बाद वह सोचते थे कि अब घर पर आराम से बाकी जिंदगी गुजरेगी। विद्यालय आने-जाने की दौड़-धूप खत्म होगी तथा दिन भर छात्रों को पढ़ाने तथा उनके साथ माथापच्ची करने की आवश्यकताएँ भी समाप्त हो जाएँगी। न सुबह जल्दी- जल्दी उठकर निबटने का झंझट रहेगा और न ही दिन भर घर से दूर रहने की विवशता। साठ साल के बाद नौकरी से रिटायर होने के पश्चात अब सच पूछो तो उनका शरीर भी ज्यादा काम नहीं करता था । कहने को तो बुढ़ापा नहीं आया था ,लेकिन भीतर ही भीतर पूरा शरीर खोखला हो गया था । विशेष रुप से पिछले दो-तीन साल से डायबिटीज हो जाने के कारण शरीर की कमजोरी जो बढ़ने लगी थी, उसे केवल रामलाल जी ही महसूस कर पा रहे थे ।
लेकिन अब क्या किया जाए ? बेटे ने जो प्रश्न उठाया है ,उसका मौन समर्थन रामलाल जी की पत्नी भी कर रही थीं । बहू भी बेटे के साथ खड़ी हुई थी और एक प्रकार से उसका भी कहना यही था कि घर में पंद्रह हजार रुपए महीना आएगा तो चार प्रकार के खर्चे आसानी से हो जाएँगे ।
रामलाल जी ने विवशता भरी आँखों से पत्नी की तरफ देखा और फिर जब उन्हें लगा कि पत्नी कहीं न कहीं कुछ विवश है तो उन्होंने सारी परिस्थितियों को भाग्य पर छोड़ दिया ।
“तो तुम लोग यही चाहते हो कि मैं संविदा पर नौकरी कर लूँ। हर महीने ₹15,000 मिल जाएँगे और इस घर का खर्चा ज्यादा अच्छी तरह से होने लगेगा।”
” हाँ पिताजी ! इसी बात के लिए तो हम आपसे कह रहे हैं । अभी आपकी उम्र रिटायर होने की नहीं है।”
चारों तरफ से रामलाल जी अपने आप को घिरा हुआ महसूस कर रहे थे । थोड़ी ही देर में उन्होंने हथियार डाल दिए। परिवार की इच्छा के खिलाफ वह आखिर कैसे जाते ? सोचने लगे कि सरकार भी तो हमें बुढ़ापा आने के बाद भी चैन से घर पर बैठने नहीं दे रही है । ₹15,000 संविदा के वेतन का लालच देकर फिर से स्कूल में अध्यापन कार्य के लिए जबरदस्ती बुला रही है । हमें तो पेंशन मिल ही रही थी । नौजवानों को वेतन देना अच्छा लगता है।
न जाओ तो परिवार वालों की निगाह में बुरे बन जाओ और अगर जाते हैं तो शरीर को घसीटना पड़ रहा है । सोचते- सोचते रामलाल जी की आँखों से आँसू निकलने ही वाले थे कि वह बिना किसी को दिखाए चुपके से अपने कमरे में चले गए।
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लेखक :रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)*
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