एक बूंद का सफर
एक बूँद थी जो उठी
धरा के आगोश से ,
चढ़ गई बादलों संग
आकाश में,
प्रवाह नहीं वजूद की,
सुरक्षित बादलों की गोद थी
उड गये होड
चमक जो एक विशेष थी,
बादलों की बादलों से भेंट थी,
अपने लिए तो धरा विशेष थी,
काँपने लगा वजूद
अब चिंता खास थी,
मैं जीवन के लिये विशेष थी,
भले एक बूँद थी,
हर मोती मुझसे,
हर जवाहर खवाहिश मुझसे,
मै जल में वायु में अग्नि भी औकात में
पृथ्वी मुझसे अपरिमित आकाश मुझसे,
अफ़सोस मुझे मेरी पैदाइश ने
नोंच डाला, मार डाला, बिन परीक्षा तोल डाला,
लेखक: डॉक्टर महेन्द्र सिंह